Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 21
________________ ई । अंजना - कहाँ से यह उस व्यक्ति का वर्णन करती है। वसन्तमाला - यह एक दूसरी बात यहाँ प्रस्तुत है । पूर्व सागर के समीप में स्थित दन्ति पर्वत पर रहने वाला महेन्द्र के समान विद्याधर राज महेन्द्र है । अंजना - वसन्तमाला - उस महेन्द्र राज के अनुरूह द्वीप के स्वामी विद्याधर प्रतिसूर्य की बहिन मनोवेगा से असाधारण कान्ति रूपी लक्ष्मी से समस्त अप्सराओं के रूप की हंसी उड़ाने वाली अंजना उत्पन्न हुई। अंजना - अप्रियभाषिणि ! मेरो अधिक प्रशंसा मत करो । वसन्तमाला - जैसी कथा स्थित है, उसी प्रकार कहना चाहिए । अंजना - ठीक है, फिर । वसन्तमाला - अनन्तर यह कन्या अन्य विद्याधर कन्याओं के साश्य फूलों के चुनने का मन बनाए हुए सिद्धकूट के बाहर मन्दार उधान में प्रविष्ट हुई। अंजना - सखि ! तुम क्या कहना चाहती हो । वसन्तमाला - अनन्तर वही प्रविष्ट उस कामदेव के द्वारा नियुक्त पवनंजय ने अपनी इच्छा से चुने हुए नए-नए फूलों से जिसकी अञ्जलि भरी हुई है, ऐसी अंजना को देखा । अंजना - इस प्रलाप से बस करो । बसन्तमाला - (मुस्कराकर) इससे अधिक श्या । तुम्हीं जानती हो । अंजना - (मन ही मन क्या इसने तब मेरे हृदय को जान लिया । मधुकरिका - (देखकर) यह राजकुमारी है । इसके समीप में जाती हूँ (समीप में जाकर) राजकुमारी की जय हो । अंजना - सखि, बैठो । मधुकरिका - जो राजकुमारी की आज्ञा । (बैठती है) वसन्तमाला - सखि मधुकरिका, कुछ कहना चाहती हो, ऐसौ लक्षित हो रही हो । अंजना - वह क्या । मधुकरिका - इस समय तुम्हारे स्वयंवरोत्सत्र के लिए पवनंजय, विद्युप्रभ, मेघनाद प्रमुख राजपुत्र आए हुए हैं। अंजना - (मन ही मन) क्या वह भी आया है । (लम्मा का अभिनय करती है) बसन्तमाला - कल कैसे लज्जित नहीं होगी । विदूषक - (कान लगाकर) - मित्र निकट में स्त्री का शब्द है ? पवनंजय - तो केले के झुरमुट में छिपकर देखते हैं । (दोनों वैसा ही करते हैं) । पवनंजय - (अंजना को देखकर) सौभाग्य से इस समय दर्शनीय वस्तु देख ली । (अनुराग सहित) जो सुकुमार विलास का हावभाव है, जो कामदेव की आराधना का साधन रूप धन है । मेरा जो शरीरधारी प्राण है, वह यह इस समय सम्मुख आ गया है | 190

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