Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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प्रतीहारी
पवनंजय
अंजना
बसन्तमाला
पवनंजय प्रतीहारी
अमात्य
: प्रतीहारी अमात्य
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पवनंजय
अमात्य
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पवनंजय
अम्मात्य
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A
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आर्य, अभिवादन करता हूँ ।
पवनंजय अमात्य पवनंजय
कुमार, कुल की घुरा को धारण करने वाले होओ । वैजयन्ति इनके लिए आसन लाओ ।
प्रतीहारी यह वेत का आसन समीप में है, अमात्य बैठिए ।
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की रोके हुए पिता के प्रस्थान की भेरी की यह ध्वनि कहाँ से फैल रही है ? ||16||
( प्रवेश करके )
कुमार की जय हो। कुमार को देखने के लिए आए हुए ये अमात्य आयं विजयशर्मा बकुल उद्यान के द्वार पर बैठे हैं ।
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( अंजना से ) प्रिये, इस समय अपने भवन की ओर ही जाओ ।
(उठती है) जो आर्य पुत्र आज्ञा दें । ( उठकर ) राजकुमारी, इधर से,
इधर से ।
( परिक्रमा देकर दोनों चली जाती हैं ।)
वैजयन्ति शीघ्र ही प्रवेश कराओ ।
अमात्य
प्रतीहारी
पवनंजय आपके आने का क्या प्रयोजन है ।
जो कुमार आज्ञा दें। (निकल कर अमात्य के साथ प्रवेश कर) अमात्य इधर से उधर ! (
हैं .
ओह, महाराज की महिमा | क्योंकि
राजा के प्रति अमात्य की निष्ठा कही जाती है, उसका व्यवहार यहाँ पर सदोष दिखाई दिया । स्वयं ग्रहण किए हुए उचित कार्य में लगे हुए, जोकि इसकी सेवा रूप मनोरंजन के लिए हैं। 117
अमात्य
कुमार, सुनिए ।
पवनंजय मैं सावधान हूँ ।
अमात्य
( सामने की ओर निर्देश कर) यह कुमार हैं, अमात्य, इनके समीप चलिए । ( देखकर) अरे कुमार हैं, जो कि यह
दुर्निरीक्ष्य समस्त पैतृक तेज को धारण करते हुए आकाश के मध्य भाग को उल्लंघन करने वाले सूर्य के अहाते पर आक्रमण कर रहे हैं | ||१८|| (दोनों समीप जाते हैं)
( बैठकर) वैजयन्ति, समस्त परिजनों को मनाकर दरवाजा बन्द कर दो । जो अमात्य की आज्ञा । ( चली जाती है)
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कुमार ने सुना ही है कि दक्षिण समुद्र के मध्य में त्रिकूट पर्वत पर लङ्कापुरी
में निवास करता हुआ राक्षसों का स्वामी दशग्रीव (रायण ) है ।
है,
है
सुना जाता
उसका पश्चिम समुद्र में स्थित पातालपुर में रहने वाले वरुण के साथ बहुत बड़ा विरोध था |
I
अनन्तर क्या हुआ ।
अनन्तर दशग्रीव ने भी खर और दूषण प्रभृति से अधिष्ठित बहुत बड़ी सेना को वरुण के प्रति नियोजित किया ।