Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 52
________________ 86 अरे चमूरके अत्यधिक वन में घूमने से थक गया है। चमूरक - तो आओ । सरोवर के किनारे सल्लकी के वन में विश्राम करें । (दोनों घूमते हैं) . . विदूषक - (देखकर) हे मित्र, यह एक वनचर सहचरी के साथ यहाँ आ रहा है । पवनंजय - (देखकर) इस प्रकार का व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली होता है, क्योंकि वियोग की कथा का भी जिसे अनुभव नहीं, प्रियतमा को प्रेम से लाकर पालन करता हुआ जी परिपूर्ण मनोरथ होता है,वह युवक कामिजनों में पुण्यशाली होता है । ॥23|| चमूरक - ( पर) इस गल्लकी ने नीने तो रुप कैसे बैठे हैं। इस प्रदेश में सामान्य मनुष्यों का प्रवेश सम्भव नहीं है । अत: निश्चित रूप से बह विद्याधर है। तो इनके समीप में जाकर हम दोनों प्रणाम करें । लवलिका - जो चमूरक कहता है । (दोनों समीप में जाकर प्रणाम करते हैं) पवनंजय - यही विश्राम करो। चमूरक - जो स्वामी की आज्ञा । (दोनों बैठते हैं) सवलिका - (स्मृति का अभिनय कर) अरे चमूरक. इस स्थान को देखकर स्मरण आ गया है । तब यहीं सल्लकी के नीचे दो अपूर्व स्त्रियाँ दिखाई दो धौं । चमूरक - अरें ठीक स्मरण किया । विदूषक - भद्रे, यहाँ पर दो स्त्रियाँ कैसे दिखाई दी और वे कैसी थीं ? लवालिका - आर्य वह शोचनीय और सदोष है । पवनंजय - भद्रमुख, कहो । चमूरक - स्वामी सुनें । पधनंजय - सावधान हूं। चमूरक - कदाचित् रात्रि के प्रारम्भ में वही पर मैं इसके साथ आया था | पत्रनंजय - फिर क्या हुआ ? चमुरक - अनन्तर एक भैरव वेश वाले पुरुष से अधिष्ठित एक यान आकाश से उत्तरा। उसके अन्दर स्त्री युगल था । पवनंजय - फिर क्या हुआ? चमूरक - अनन्तर क्षणभर विताकर उस पुरुष ने भी, 'स्त्री ! इधर आओ, इस समय यहाँ क्या कार्य है ? हम तुम्हारी जन्मभूमि को जा रहे हैं। इस प्रकार पुनः पुनः आग्रहण किए जाने पर दूसरी स्त्री ऐसी स्थिति में पिताजी और मां का दर्शन करने में समर्थ नहीं हूँ, इस प्रकार आँसू भरकर कहती हुई. यहाँ सल्सकी वृक्ष के नीचे स्थित थी। पधनंजय - (मन ही मन) इस समय क्या आ पड़ेगा ? विदुषक - (मन हो मन) निश्चित रूप से वही हुआ । चमूरक - अनन्तर वह, अधिक कहने से क्या इस वन से नहीं निकलूंगी, इस प्रकार वचन देकर चुप हो गई। तब दूसरी स्त्री ने सखि तुम गर्भवती हो, इस समय

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