Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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बहारस्थल के समान इस कमलिनी
सरोवर के किनारे के रेतीले तट पर आरोहण करो ||4411
( सामने देखकर और सोचकर ) इसी रेतीले तट के तल पर उगी हुई स्थलकमालिनी की धनी छाया में बैठे हुए चक्रवाक के जोड़े से पूछता हूँ ।
तुम दोनों जिसके इन दोनों स्तनों की समता करने में समर्थ हो ऐसी उस कान्ता ने क्या तुम दोनों को नेत्रोत्सव दिया ||45||
ये दोनों कैसे
परस्पर प्रेम रस से लाए मृणाल का आस्वादन करने में प्रवृत हो गए हैं। ये दोनों विश्वास की लीला के सुख को अपनी इच्छानुसार चिरकाल तक भोगें ॥46 ||
( अन्तरङ्ग में खेद के साथ साँस लेकर आकाश में लक्ष्य को बाँधकर ) प्रिये महेन्द्रराज पुत्रि,
तुम आँसू भरे हुए अपने दोनों नेत्रों को ओर पवनञ्जय को अञ्जन से मुक्त मत करो | उन्हें और मुझे आनन्द से युक्त आसुंओं से विरह के अन्त में पूर्ण मनोरथ से रंग दो ||46||
(परिक्रमा देता हुआ ) हाय, यह क्या है ?
स्वयं महान् अङ्ग इस समय विवश होकर शिथिल हो रहे हैं। अत्यधिक भयभीत होने के कारण धनुष बाण सहित हाथ गिर गया है। खिन्न गति दोनों पैरों को लड़खड़ा रही है, वाणी गद्गद् हो गई है, दोनों नेत्र आँसुओं से रूद्ध हो गये हैं, मेरा हृदय कुछ क्षुभित हो रहा है ||49 ||
( सामने देखकर ) तो इसी घनी छाया वाले चन्दन से मुक्त नव विकसित वनसरोवर के फूलों के मकरन्द के परिचय से सुगन्धित मन्द वायु से भली प्रकार सेवित लतामण्डप में प्रवेश कर, स्वंय गिरे हुए वसन्त के फूलों से रचित शय्या पर चन्द्रकान्तमणि निर्मित शिलापट्ट पर चन्दन के वृक्ष के पास ही रूककर कुछ समय विश्राम करता हूँ (वैसा कर )
इस विरह व्यथा से मैं अन्य दशा को ले जाया गया हूँ । महेन्द्र राजा की पुत्री की प्रवृत्ति को कौन निवेदन करे ||49||
( अनन्तर प्रतिसूर्य प्रवेश करता है)
प्रतिसूर्य -
दूत के मुख से मुझे राजर्षि प्रहलाद ने आदेश दिया है कि विजयार्द्ध से निकलकर दन्तिपर्वत की ओर जाते हुए विश्राम के लिए सरोवण सरस्वो में उतरे हुए पर्वतीय बाडे के निवासी वनचर से अजंना का मातङ्गमालिनी में प्रवेश प्राप्त कर (जानकर ) मैं अजंना को बिना देखे इधर से नहीं जाऊँगा, इस प्रकार पवनंजय अत्यधिक क्रोध के कारण वही ठहर गए। इस वृतान्त को प्रहसित से प्राप्त कर हम सब सरोवण तीर पर उतर गए हैं। अनन्तर वहीं के वनचर के द्वारा मातङ्गमालिनी में ही अर्जना को खोजने के लिए वह प्रविष्ट हो गए. ऐसा कहा गया है। इस प्रकार वत्सा अर्जना को और पवनंजय को खोजने के लिए आपको भी आ जाना चाहिए। मैं इस मातङ्गमालिनी में प्रविष्ट