Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 72
________________ 66 विदूषक - महाराज, अधिक कहने से क्या, आपसे हम सब प्रत्युज्जीवित हो गए । प्रतिसूर्य - . आर्य प्रहसिप्त, ऐसा मत कहो । यह सब गन्धर्वराज मणिचूड की कृपा का द्योतक है। (अनन्तर आकाश से उतरा हुआ मणिचूड प्रविष्ट होता है ।) (सभी उठते हैं ।) मणिचूड - यह हमारा प्रिय मित्र कुमार पवनंजय है, निर्मल जो अञ्जना से युक्त होता हुआ भी आज मेरे लिए खड़ा हो रहा है ||13|| तो इसके समीप जाता हूँ (समीप में जाता है ।) (समी प्रणाम करने में। प्रतिसूर्य - महाराजा प्रतिसूर्य । प्रतिसूर्य - आज्ञा दो । मणिचूड़ - मित्रता को प्राप्त वरुण ने, पूर्व उपकार से प्रेरित लङ्केश्वर रावण ने, विजयार्द्ध अभिराज्य की लक्ष्मी इसी पवनंजय को यौवराज्याभिषेक महोत्सव पर प्रदान करने के लिए इस समय मुझसे कहा है और इस प्रकार महाराज प्रसाद, महेन्द्र और अन्य दोनों श्रेणियों के प्रधान विद्याधरों के द्वारा आज्ञा प्राप्त कर स्वयं यहां आया हूँ। तो आप लोग भी अनुमति प्रदान करें। प्रतिसूर्य - (हर्षपूर्वक) हम लोगों ने अनुमति दे ही दी है ।। उत्पन्न सौहार्द वाले आपके विधमान रहते हुए संसार में कौन सी वस्तु कठिनाई से प्राप्त होने योग्य हो सकती है । विदूषक - (हर्षपूर्वक) मित्र, कल्याण परम्परा से बधाई हो । मणिचूड - हे विद्याधर राजवंश के तिलक, प्रहलाद राजा के पुत्र, तुम्हें मैंने विद्याधर गिरि की साम्राज्यलक्ष्मी दी। . पवनंजय - मैं अनुगृहीत हूँ। मणिचूर - (सामने निर्देश कर) विनय पूर्वक नम्र मुकुटों के शिखर पर प्रणापाञ्जलि रखकर तुम्हारी ये विद्याधर लोग चारों ओर से उत्सुक होकर सेवा कर रहे हैं In4ll प्रतिसूर्य - ये आपके अनुग्रह के योग्य ही है। मपिचूड - तुम्हारे प्रति आसक्त यह सौहार्द मुझे वाचाल बना रहा है । और तुम्हें कौन सो वस्तु उपहार में +, हे सौम्य, मुझसे आज कहो । पपर्नजय - पुत्र सहित, प्रिया प्राप्त की, विद्याधर लक्ष्मी भी प्राप्त की । हे सुमुख, कौन. 'सी लक्ष्मी दुष्प्राप है, तथापि यह हो ॥5॥ जिसके समस्त उपद्रव शान्त हो गए हैं, ऐसी प्राणियों को धारण करने वाली पृथ्वो का राजा पालन करें । समय समय पर बादल संसार की अभिलषित वर्षा को वर्षायें । सज्जनों के साथ कवियों की योग्य बहुमति को पाकर काव्यरचनायें स्थिर रहें । जैनमार्ग में मन लगाए हुए भव्यजनों को निरन्तर कल्याण हो |१६| (सभी लोग चले जाते हैं) श्री गोविन्द भट्टारक स्वामी के पुत्र श्रीकुमार, सत्यवाक्य, देवखल्लभ, उदय भूषण नामक महानुभावों के अनुज कवि वर्द्धमान के अग्रज कवि हस्तिमल्ल विरचित अञ्जना पवंजय नामक नाटक में सातवां अङ्क समाप्त हुआ । यह अंजना पवनंजय नामक नाटक समाप्त हुआ ।

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