Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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50 वसन्तमाला - ठीक है। विदूषक - इस समय तुम कहाँ जा रही हो ? वसन्तमाला - आर्य, इस समय महाराज प्रतिसुर्य अनुरुह द्वीप से खत्म हनुमान को लेकर
आयेंगे । अतः मिश्रकेशी प्रमुख सखोजनों के साथ वत्स हनुमान् की अगवानी
करने के लिए जा रही हूँ । विदूषक - मिश्रकेशी प्रमुख सब सखीजनो का अन्त: पुर की प्रधाना युक्तिमती के साथ
विदा हुए कितना ही समय बीत गया । तो आओ, मित्र के समीप जाकर
उन्हीं के साथ वत्स हनुमान को दोनों देखें। वसन्तमाला - यदि ऐसी बात है, तो आओं दोनों वहीं चलें ।
(घूमकर दोनों निकल जाते हैं) प्रवेशक | (अनन्तर जिनका अभिषेक किया है, ऐसे पवनंजय अंजना विदूषक और
वसन्तमाला प्रवेश करते हैं) विदूषक - इधर से इधर से (सभी घूमते हैं।) यह सभामण्डप है 1 प्रियपित्र प्रवेश करें।
(सभी प्रवेश करते हैं) (सामने निर्देश करके) यह मोतियों से जड़े चेंदोखे
के नीचे सिंहासन सज्जित है । इसे अलंकृत करें । पधनंजय - प्रिये, बैठिए ।
(सभी यथायोग्य बैठते हैं ।) अञ्जना - सखि वसन्तमाला, भाग्य के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है, जो कि हम दोनों
भी समस्त लोक के द्वारा सम्मानित आर्यपुत्र के समीप पुनः आ गए हैं। वसन्तमाला - युवराज्ञी, यह मेरे लिए दूसरा जन्म सा प्रतीत हो रहा है । पवनंजय - एक भाग्य है, दया करने वाला प्रतिसूर्य एक है, सचमुच सखी का सहचर
मणिचूड एक है। मेरे भाग्य से ये पूर्ण वृद्धि को प्राप्त हैं । ये तुम्हारे दर्शन में निश्चित रूप से मात्र कारण हैं |
वत्स हनुमान् को लाने के लिए गए हुए महाराज प्रतिसूर्य देर कर रहे हैं। वसन्तमाला - हर्ष से विकसित मुख वाला यह व्यक्ति चारों ओर परिभ्रमण कर रहा है,
इससे मैं अनुमान लगाती हूँ कि वत्स हनुमान् को लेकर महाराज प्रतिसूर्य
आ गए हैं। पवनंजय - (देखकर) वसन्तमाला, ठीक देखा । यहाँ निश्चित रूप से वेग के कारण
शिथिल हुए केश पाश को बायें हाथ में रखकर दूसरी हथेली से जिसकी मेखला दीली पड़ गई है, ऐसी नीवी को धारण कर, कंधे पर से उड़ते हुए स्तनांशुक की झालर कपोल से धारण कर प्रीतिपूर्वक चारों ओर से अन्तः पुर की स्त्रियाँ सहसा दौड़ रही हैं ।।2।। सामने चञ्चल लाठी को इधर उधर पुनः पृथ्वीतल पर रखता हुआ, आकुल थ्याकुल होकर घबराहट 'पूर्वक सिर उष्पीय (साफा) पट्ट को धारण करता हुआ, लम्बे लम्बे उड़ते हुए कअचुक को इस समय उठाकर हर्षित हुआ यह पुराना कञ्चुकी कठिनाई से इधर से दौड़ रहा है ।।3।।