Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 51
________________ 35 विदूषक - पवनंजय - यह छोटा सा सालाब है। तो उतरते हैं । (दोनों उतरने का अभिनय करते हैं) हे कालमेघ, विश्राम करने के लिए इस तालाब में स्नान करो । अरे देखो, तुम्हारे बचनों के अनुसार हाथो तालाब के जल में स्नान कर रहा पवनंजय - विदूषक - पवनंजय - हे मित्र देखो । 'यह सूइसे छो जलों से माली के नारे की खुजलाहट को दूर करता हुआ, मृणाल के टुकड़ों को बलात् उखाड़कर रस लेता हुआ, मुख उठाकर तैरता हुआ, हाथी के समान बड़े मकर की लीला का अनुभव करता हुआ, इस तालाब में डूबता, उत्तराता हुआ इच्छानुसार बिहार कर रहा है | 118 विदूषक - हे मित्र, सल्लकी वृक्ष के नीचे बैठते हैं। पवनंजय - जैसा आप कहें । (दोनों बैठते हैं) विदूषक - अंजना गर्भवती होकर महेन्द्रपुर को चली गई, ऐसा कहती हुई युक्तिमती कुछ शून्य हृदया सी क्यों हो गई थी। अत: यह बात इतनी सी नहीं है। पवनंजय - मित्र, मैंने भी यही सोचा है और - कुलाङ्गनायें आभिजात्य का पालन करने में रत, सब प्रकार से निन्दा से भयभीत, पात्तिनत को ग्रहण किए हुए तथा प्रशंसनीय चरित्र हुआ करती है | 19) विशेषकर यहां माता है । विदूषक - बात यही है । दूसरी बात यह है कि यदि वे महेन्द्रपुर में होती तो इतना अंजना को गए हुए हो गया, ऐसा नहीं हो सकता कि हमारे पास कोई सन्देशवाहक न आता । अतः यहाँ महेन्द्रपुर में नहीं हैं, ऐसा सोचता हूँ। पवनंजय - यह बात ठीक है (सोचकर) यदि अंजना महेन्द्रपुर नहीं गई तो युक्तिमती महेन्द्रपुर को जाने को उत्सुक हम लोगों को रोकती क्यों नहीं ? विदूषक - बात यही है तथापि यदि महेन्द्रपुर में है तो अंजना को गए इतना समय बीत जाने पर हमारे पास सन्देशवाहक आता, यह दोष तो उप्सी प्रकार है । पवनंजय - यह दोनों और फांसी वाली रस्सी है। विदूषक - यह बात सही-सही हम लोग कहाँ से प्राप्त करें ? (अनन्तर प्रिया सहित वनचर प्रवेश करता है) रे रे लवलिका, वनवास का सुख अच्छा है । यहाँ पर पर्वतीय गुफायें घर हैं, करील के कन्दमूल भक्ष्य हैं, बन की भूमियों में विहार करते हैं, वेणुतण्डुल आहार है । 1200 लवलिका - अरे चमूरक, तुमने ठीक कहा । क्योंकि - नये-नये किसलय वस्त्र हैं, सुगन्धित कस्तूरी लेपन है, कक्कोल मुख की सुगन्ध है और हाथी के गण्डस्थल के मोतो हार हैं । ||21|| और भी - मयूर के पंख रूपी कर्णाभूषण की माला, कानों में दन्तपत्र तथा चोटी में चमरी मृगों के वालों को शयरी घारण करती हैं । ॥22|| बनचर -

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