Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 49
________________ पवनंजय - मित्र, हम दोनों उतरते है। विदूषक - जो आप कहते हैं । (दोनों उतरते हैं) विदूषक - (आगे की ओर निर्देश कर) हे मित्र, यह युक्तिमती वंश के व्यक्तियों के साथ तुम्हारी अगवानी करने के लिए इधर आ रही है। (अनन्तर जैसा निर्देश किया था, वैसी युक्तिमती प्रवेश करती है) युक्तिमती - महारानी केतुमती ने मुझे आज्ञा दी है कि कुमार के वापिस आने पर माङ्गलिक कार्य करो । (सामने देखकर) यह कुमार आ गया । समीप में जाकर यथोयोग्य कार्य करती हूँ (समीप में जाकर, वैसा करती हुई) कुमार की जय हो । पवनंजय - अरी युक्तिमती, पिताजी माँ के साथ कुशल तो हैं । युक्तिमती - ऐसा ही है, कुशल है । महाराज आपकी विजय से वृद्धि को प्राप्त हैं । विदूषक - आप ब्राह्मण को क्यों प्रणाम नहीं कर रही हैं ? युक्तिमती - (मुस्कराहट के साथ) इस झूठी बात करने से बस करो । विदूषक - आप मुझे क्यों उलाहना दे रही हैं । युक्तिमती - आर्य, कौमुदी प्रासाद में आने पर भी तुमने मुझे स्मरण नहीं किया । विदूषक - (हास्य के साथ) मित्र दासी को पुत्री वसन्तमाला ने रहस्य भेदन कर अपराध किया है। पवनंजय - (मुस्कराकर) युक्तिमती, मित्र के बहाने से हमें उलाहना न दो । वह हमारे आने के प्रकट करने का समय नहीं था । युक्तिमती - आर्य तो आपको नमस्कार है । कल्याण हो । सूत - माननीया, केवल तुम सबको ही कुमार का आगमन अविदित नहीं है, अपितु हम लोगों को भी इससे पूर्व ज्ञात नहीं हुआ । पवनंजय - (मुस्कराकर) युक्तिमती, क्या तुम्हारी प्रियसखि वसन्तमाला सकुशल है ? युक्तिमती - (विषादपूर्वक, मन ही मन) हूँ इस समय मन्द भाग्य वाली मैं क्या कहूँ । ठीक है । ऐसा कहती हूँ (प्रकट में) ऐसा ही है, प्रियसखी वसन्तमाला अंजना के साथ सकुशल है। विदूषक - (मुस्कराकर) माननीया, आपने इनके हृदय को ठीक जाना 1 युक्तिमती - दूसरी बात कहने की है। पवनंजय - क्या ? युक्तिमती - स्थामिनी अंजना गर्भवती होकर वसन्तमाला के साथ महेन्द्रपुर चलो गई । विदूषक - (सन्तोष के साथ) अरे सौभाग्य से बधाई हो । पवनंजय - युक्तिमती, पारितोषिक लो । (अपने हाथ कड़ा लेकर दे देता है ।) युक्तिमती - (लेकर) मैं अनग्रहीत हूँ। पवनंजय - तो हम लोग प्रिया के साथ ही आकर पिताजी और माँ को देखेंगे । युकिमती - (अपने आप) हूँ इस समय मैंने क्या किया (प्रकट में) कुमार, यहाँ आकर विदूषक -

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