Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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और भी -
81 सौभाग्य से जिन्होंने इस युद्ध के बहाने से हम लोगों की कुमार के साथ प्रेम के रस से आई होकर बद्ध हृदय वाली मैत्री सम्पादित की वे खरदूषण प्रभृति श्रेष्ठ राक्षसों से उत्साहपूर्वक तुम्हारे कीर्ति के वैभव का कथन करते हुए लङ्कापुरी को अपनी इच्छानुसार जाये । III इस प्रकार सुनकर कुमार ने सौहार्द शब्द से युद्ध उत्साह त्यागकर वरुण से कहा कि - बड़े खेद की बात है कि आपके स्वाभाविक रमणीय गुणों को वास्तविक रूप में न समझकर मुग्ध हम लोग इससे पूर्व व्यर्थ ही बञ्चित हो गए । तो विश्वास के सुख से इस प्रकार बहुत देर बाद मेरा आज सुदिन हो गया। युद्ध व्यापार में संघर्ष से उत्पन्न यह अतिक्रम क्षमा करें । ॥5॥ दूसरी बात यह भी है - युद्ध वैर करने में समर्थ होता है, यह वचन ऐकान्तिक नहीं हैं । क्योंकि इस युद्ध ने ही हम दोनों में सौहार्द उत्पन्न कर दिया । || इस प्रकार परस्पर प्रणय रस में आकृष्ट पवनंजय और वरुण की बलयती मैत्री हो गई । मय विजयोत्सव निवृत्त हो गया, कुमार कल ही आयेंगे, इस प्रकार महाराज से निवदेन करने के लिए मैंने कल ही लेख जिनके हाथ में हैं, ऐसे दुत भेजें हैं । आज वरुण राजीव प्रमुख सौ पुत्रों के साथ स्वयं ही आकर - पश्चिम समुद्र से उत्पन्न बहुमूल्य रत्न उपहार में देकर यथोचित सुखकर बातचीत के प्रसङ्क से थोड़ी देर ठहरकर कुमार से पूछकर चले गए। खर दूषण प्रमृति श्रेष्ठ निशाचरों को कुमार ने समुचित सत्कार पूर्वक लङ्कापुरी को भेज दिया । कुमार ने आज्ञा दी है कि विजयार्द्ध पर ही आने के लिए तैयार हो जाना चाहिए । मैंने कुमार की आज्ञा मान ली है। इस समय - जिन्होंने भली प्रकार देखा है, ऐसे नेत्रों को सुलभ उन-उन विशेषों से सदा लुभाने वाले सस्पृह समुद्रतीरवती घनों से पूछकर समस्त वियोग के खेद को नाश करने के इच्छुक ये विद्याधर कान्ता के संगम को शीघ्रता युक्त मन से यानों पर चढ़ रहे हैं । ||3|| तो इस समय हम लोग भी शेष कर्तव्य को पूरा करेंगे (चला जाता है)
शुद्ध विष्कम्म (अनन्तर पवनंजय और विदूषक प्रवेश करते हैं) मैंने वरुण के साथ द्रढ़तर मैत्री कर ली, खरदूषणादि श्रेष्ठ निशाचरों को छोड़ दिया, दशमुख (रावण) का मानभङ्ग रोक दिया और पिताजी की आज्ञा (स्वीकार) कर ली । | तो इस समय मन अंजना को देखने के लिए उत्कण्ठित है । रथ लाओ। (रथ के साथ प्रवेश कर) आयुष्मान विजयी होइए । सारधी, रथ लगाओ ।
पवनजय -