Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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चेट -
क्रूर
चेट
क्रूर -
चेट
क्रूर
चेट
क्रूर
चेट
1
क्रूर. चेट
पेट
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थेट -
कञ्चुकी
क्रूर - hoget
क्रूर -
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28
( देखकर) स्वामी के मद का समूह कैसे भूमि का अतिक्रमण करता हुआ आरुढ़ है । क्योंकि -
इस समय मदिरा का कुरला कर विद्याथर भैरव स्वयं अपने समस्त शरीर मैं बार-बार पृथक-पृथक शीतल छटा को थूक रहा है । 1|13|| (चारों ओर देखकर) अरे मदिरा का समुद्र चारों ओर से भी भाग रहा है। कैसे, मदिरामय भाव होने से इसे चारों ओर सुरासमुद्र प्रतिभासित हो रहा है ।
(तरंग में गिरने का अभिनय करता है) क्या बात है, ये तरंगें तीर के ऊपर हैं। अरे हिन्तालक, आओ, दोनों तैरें [ तैरने का अभिनय करते हुए ] मदों शहरों के चलने से सहसा सुरासपद में मग्न हूँ । अरे अरे मैं क्या करूंगा, क्या तैरूँगा अथवा पीऊँगा ? |11431
( थकान का अभिनय करते हुए) अरे इस समय मैं बहुत थक गया हूँ । अतः इस परिश्रम को इस मन्त्र के जाप से शमन करूँगा ।
शुण्डा, सुरा, प्रसन्ना, कल्या, कादम्बरी, मधु, शीधु, मदिरा, मद्य, मधुरा, भैरेयी, वारुणो, हाल | ॥15॥
(पुनः पुनः पढ़ता है)
क्या इस समय स्वामी थक गए हैं I
अरे इस समय कहाँ विश्राम करूँगा ।
( मन ही मन ) स्वामी का पद मानों थक गया है। अतः मैं निवेदन करूँगा। ( प्रकट में ) स्वामिन्, आर्य लब्धभूति पुराने उद्यान में कौन से समय स्वामी की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
अरे हिन्तालक, इतने समय तक तमने क्यों नहीं कहा ?
स्वामी, मैंने पहले कहा था। स्वामी ने मद के समूह से परवश होकर सुना
नहीं ।
हूँ, मेरा प्रमाद 1 तो वहाँ चलेंगे। इधर से, इधर से ( दोनों घूमते हैं) स्वामी, यह पुराना उद्यान है ।
(दोनों प्रवेश करते हैं) (अङ्गुली से निर्देश कर) प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
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स्वामिन्! ये आर्य लब्धभूति तुम्हारे आने की
( प्रवेश कर )
भैरव देर कर रहे हैं । (देखकर) नृशंस समीप में ही कैसे हैं ? जो चाह अत्यन्त भयानक शरीर को धारण करता हुआ क्रूर यह स्वयं शरीर धारिणी आरभटी वृत्ति के समान आ रहा है । 1|16||
(समीप में जाकर ) आर्य, मुझे क्या करना है ।
शङ्का से युक्त होकर चेट को देखता है । क्या राज रहस्य है।