Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
View full book text
________________
पवनंजय
विदूषक
पवनंजय
विदूषक
पवनंजय
विदूषक -
पवनंजय
विदूषक
पवनंजय
विदूषक
पवनंजय
!
शरावती पवनंजय
शरावती - पवनंजय
शरावती
पवनंजय
-
-
विदूषक पवनंजय तो मुद्गर से जाने गए ही जायेगे ।
-
21
Se
(कोप के साथ) ।
शीघ्र ही तीनों लोकों को भयभीत निजस्त्रियों के कण्ठग्रहण को देने वाले प्रत्यञ्ना के घोषों से आकाश में श्रोत्र मार्ग को बहिरा बनाती हुई फूलों की वर्षा हो । कान तक खींचकर छोड़े गए तीक्ष्ण सैकड़ों बाणों से दिशाओं के भाग को ढकता हुआ यह मैं आज समस्त शत्रुपक्ष को बलपूर्वक चूर्णचूर्ण करता हूँ | ॥14॥
क्या यह प्रहलाद के पुत्र के लिए असंभव है । फिर भी यह राजधर्म नहीं हैं ।
क्या संग्राम राजधर्म नहीं है ।
नहीं, जल्दी मत करो। इस समय दोनों सेनाओं ने एक दिन का युद्ध रोका हुआ है ।
मित्र, तुमने मुझे ठीक याद दिलाया। ओह शत्रु समूह का जीवन अवशिष्ट है ।
इस प्रकार यहाँ आपका जाना सर्वथा उचित नहीं है ।
यदि यह बात है तो इसी समय जाकर हम लोग सूर्य के उगने से पूर्व ही लौट आयेंगे ।
यह भी उचित नहीं है। इस प्रकार शत्रु को जीतने के लिए गए हुए तुम कार्य समाप्त किए बिना नगर में प्रवेश करोगे तो महाराज और प्रजायें क्या कहेगी ।
मित्र, तुमने ठीक कहा । जिसका आगमन विदित नहीं है, ऐसे हम लोग अंजना के समीपवर्ती उद्यान में उत्तर जायेगे ।
यहाँ ठहरते हुए सेनापति मुद्गर क्या तुम्हें नहीं खोजेंगे ?
इसके विषय में उससे कहना ठीक नहीं हैं ।
बात यही है। किसी बहाने से जाना चाहिए । अरे यहाँ पर कौन है ? ( प्रवेश कर )
कुमार आज्ञा दें ।
शरावति, मेरे वचनों के अनुसार सेनापति मुदगर से कहो कि प्रातः काल से चार प्रकार सेना की सामग्री के दर्शन के दबाव से मेरा मन इस समय नींद को चाह रहा है। तो इस समय आप नियोजित सांग्रामिकों को सावधानी पूर्व तैयार करना ।
जो कुमार की आज्ञा | ( चल पड़ती है)
शरावती, जरा आओ ।
(समीप में जाकर ) आज्ञा दो ।
मैं इसी कुमुद्वतो के तीरं प्रदेश पर रेशमी वस्त्र से बने पटमण्डप में शवन करता हुआ रात्रि बिताता हूँ। तुम भी प्रतिहारबर्ग के साथ समस्त परिजनों को रोककर प्रवेशद्वार को बन्द कर दो ।