Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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28 वसन्तमाला - राजकुमारी, शीघ्र ही पति को देखोगी । अंजना - संताप का अभिनय करती हुई । कितने काल तक मैं इस शिशिरोपचार के
दु:ख को सहगी। पवनंजय -
(सुनकर और देखकर, मन ही मन) क्या इस सपय प्रिया दूसरी ही अवस्था में विद्यमान है । यह निश्चित रूप से - दुर्बल शरीर वाली, शिथिल गौं वाली, आँसुओं से मैले नेत्र वाली, श्वास ।
युक्त, केशपाश खुले हुई, विरह में संसर्ग युक्त सी हो गई है । ||16|| अंजना - हाय आयपुत्र, मुझे कच दर्शन सुख दोगे । (इस प्रकार मोहित होता है) वसन्तमाला - (घबराहट के साथ) राजकुमारी धैर्यधारण कीजिए, धैर्य धारण कीजिए । पवनंजय - (घबराहट के साश्च समीप में जाकर) प्रिये, धैर्य धारण करो । विदूषक - (घबराहट के साथ समीप में जाकर) आप धैर्य धारण करें । वसन्तमाला - (घबराहट के साथ) स्वामी कैसे, स्वामी की जय हो । अंजना -
(आश्वस्त होकर और साँस लेती हुई देखकर) आर्यपुत्र कैसे ?
(प्रस्थान करना चाहती है) पवनंजय - हे दुर्बल अङ्गों वाली । अत्यन्त कष्ट देने से बस करो, वहीं पर धीरे से ।
बैठ जाओ । साक्षात् कटाक्ष से साध्य दासजन के प्रति यह कौन सा व्यवहार है । 180
(हाथ पकड़कर बैठ जाता है) पिदृश्य - अपना कल्याण हे कि के माइश कु. प्राप्त करो । अंजना - (विस्मक पूर्वक) सखि बसन्तमाला, क्या यह स्वप्न है या परमार्थ है । वसन्तमाला - अत्यन्त सरल, पति से पूछ ।। पवनंजय - पहले स्वप्न में अनेक बार आए हुए मेरे द्वारा ठगी गई । पुनः मेरे आ जाने
पर यह मुग्धा आज विश्वास नहीं कर रही है । Im9|| वसन्तमाला | हम दोनों को यहाँ आए किसी ने देखा नहीं है । तो इस समय
जैसे कोई आगमन को न जाने, वैसा प्रयत्ल करना चाहिए । वसन्तमाला - जो स्वामी की आज्ञा । आर्य प्रहसित, आओ द्वार की रक्षा करें । विदूषक - जो आप कहती हैं ।
(दोनों चले जाते हैं) पवनंजय - (अंजना को देखकर)
कमलनाल से अलंकृत, घने चन्दन के द्रव से लिप्त, पीले मुखपाली यह यह चांदनी की अधिष्ठात्री देवी है, ऐसा मैं मानता हूँ। 2011 प्रिये इस समय भी विरह शमन का कष्ट उठाने से क्या? तो इसी समीपवर्ती मणिचन्द्रकान्त वासगृह में प्रवेश करें। (हाथ पकड़कर) प्रिये, इधर से, इधर से । श्री हस्तिमल्ल विरिचित अंजना पधनंजय नामक
नाटक में तृतीय अङ्क
समाप्त