Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 40
________________ चतुर्थो अङ्क (अनन्तर वसन्तमाला प्रवेश करती है) वसन्तमाला - यहाँ कभी आए हुए स्वामी को चार माह हो गए । इस समय सजकुमारी का मानों दोहद है । उसके नील कमल के पत्ते के समान दोनों स्तनों के अग्रभाग नीले पड़ गए है। दोनों गाल इलायची के फल के समान पोले पड़ गए हैं । उदर में रोमपंक्ति अंजन की रेखा के समान स्पष्ट रूप से नीली हो गई है । अत: इस सुन्दर वृत्तान्त को महारानी केतुमतो से निवेदन करती हूँ। (परिक्रमा देकर, सामने देखकर) यह कौन इधर आ रही है । क्या बात है, महारानी केतुमती की सेविका युक्तिमती है। (अनन्तर युक्तिमती प्रवेश करती है) युकिमती - महारानी केतुती आज्ञा दी है कि वधू अंजनी अस्पस्य है । तो उसकी कुशल पूछकर आओ। तो स्वामिनी अंजना के चतुःशाल (चार खण्ड वाले भवन) की ओर जाती हूँ । (घूमती है) वसन्तमाला - यह प्रिय सखी युक्तिमती किसी अन्य कार्य में व्यग्र हृदय बाली होकर मुझे बिना देखे ही जा रही है । तो इसके पीछे चुपचाप जाकर आँख बन्द कर उपहास करुंगी । (वैसा ही करती है) युक्तिमती - (देखकर, मुस्कराहट के साथ) - और कौन मेरे ऊपर इस प्रकार विश्वास करती है । प्रिय सखि वसन्तमाला, तुम पहचान ली गई हो। वसन्तमाला - (हाथ छोड़े हुए. हास्यपूर्वक) सखि, तुम निश्चित रूप से युक्तिमती हो। सखि, इस समय तुम कहाँ जा रही थी ? युक्तिमती - सखि ! अंजना कुछ अस्वस्थ है, अत: महारानी केतुमतो की आज्ञा से कुशलता पूछने के लिए जा रही हूँ | वसन्तमाला - भोली भाली, वह अस्वस्था नहीं है । वह तो दोहद है । यसन्समाला - सखि, जरा सुनो । एक बार अर्द्धरात्रि में प्रहसित के साथ स्वामी आकर चले युक्तिमती - हम लोगों को कैसे ज्ञात नहीं हुआ । वसन्तमाला - वे युद्ध समाप्त हुए बिना नगर में प्रवेश हुआ हूं. अतः वीरजनोचित लज्जा से आने को न प्रकट कर रात बिताकर प्रात:काल ही चले गए । युकिमती - सखि, ठीक है । तुम कहाँ चल पड़ी थी। वसन्तमाला - इस सुन्दर वृत्तान्त को महारानी से निवेदन करने के लिए । युक्तिमती - सखि, स्वामिनी से निवेदन करना युक्त हो है । फिर भी मेरा हृदय कुछ व्याकुल सा है। वसन्तमाला - क्यों ? युक्तिमती - महारानी केतुमती स्वामिनी अंजना के अप्रतिम चरित्र को जानती ही है ।

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