Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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तथापि विशेषत: स्त्रियों के अभिजात्य की रक्षा करने में महारानी एकान्त
(अत्यन्त) सावधान है । अतः इस वृतान्त को सुनकर (न जाने) क्या करेंगी? वसन्तमाला - सखि, इस समय व्यर्थ में ही क्यों दुःखी हो रही हो । चार मास बाद युद्ध
समाप्त होने पर आ जाऊँगा, ऐसा कहकर तब स्वामी चले गए थे । चार
! मास बीत गए । अत: कल या परसों स्वयं स्वामी यहाँ आ आयेगें । युक्तिमती - ' वह बात भी मानों दूर हो गई। क्सन्तमाला - कैसे ? युकिमती - वत्स, बिना वाधा के इस समय वरुण का मानभङ्ग नहीं कर सकते । क्योंकि
खरदूषणादिका. छुड़ाना अवरुद्ध नहीं होगा, उसी प्रकार विद्यावल से युद्ध में व्यवहार करना चाहिए । ऐसा मानकर महाराज सेनापति मुद्गर को लेख
भेजेंगे । इस प्रकार कुमार देर करेंगे । वसन्तमाला - फिर भी क्या चन्द्रलेखा भी विष उगलती है अथवा क्या चन्दनलता अग्नि
उगलती है । अत: स्वामिनी केतुमती के विषय में अन्यथा शक्का मत करो। युक्तिमती - तो आप जॉय । मैं भी स्वामिनी अंजना के दोहला उत्पन्न होने से रमणीय
रूप को देखकर आंखों के फल का अनुभव करूंगी । घसन्तमाला - सखि, वैसा ही हो । (चली जाती है)। युक्तिमती - (घूमती हुई, आकाश में लक्ष्य बाँधकर) स्वामिनी केतुमती, के प्रति तुम्हारे
असाधारण प्रेम, चरित्र और सत्यपालन को मैं आनती ही हूँ। फिर भी केवल अपने दुःख के कारण निवेदन कर रही हूँ। दूसरे की निन्दा की शङ्का करती हुई मेरी निजी उदारता अनुचित न हो जाय । (नेपथ्य में)
माननीया युक्तिमती-1 युक्तिमती - मुझे कौन बुला रहा है । (पीछे देखकर) कञ्चुकी लब्धभूति कैसे ?
(प्रवेश कर) कन्चुकी - माननीया उकिमती । युक्तिमती - (समीप में जाकर) आर्य मुझे क्यों बुला रहे है ? कञ्चुकी - अब आप वहाँ न जाय । महारानी की ही समीपवर्तिनी होओ । युकिमती - (शङ्का सहित) आर्य, पहारानी की आज्ञा से स्वामिनी अंजना की, जो इस
समय कुछ अस्वस्थ हैं, कुशल पूछने के लिए मैं चली थी । कम्बुकी - स्वयं महारानी तुम्हें बुला रही है। युक्तिमती -- (विषाद सहित, मन ही मन) है जैसा मैने सोचा था, वैसा ही हो गया (प्रकट
में) आर्य, यदि ऐसा है तो महारानी के पास जाऊँगी । (चली जाती है) (परिक्रमा देता हुआ) अरे, बड़े खेद की बात है । अपने अभिजात्य के अधीन निर्दोष चरित्र जानकर भी कुलस्त्रियाँ प्राय: थोड़ी सी भी निन्दा से उरती हैं | InH तो इस समय शाखानगर की ओर ही चलता हूँ। (घूमकर और अपने आपको देखकर)