Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
View full book text
________________
पवनजय - अमात्य - पवनंजय - विदूषक -
पवनंजय -
और क्या । तो महाराज ही यहाँ प्रमाण है । तो इस समय महाराज को ही देखते हैं । जी हाँ । प्रथम सङ्कल्प है । तो प्रिय मित्र उठे। (सभी उठते है) धारा प्रवाह निवाला बलों के के गरे निको हुरत की धारा के प्रवाह में छिपे हुए पश्चिम समुद्र में असमय ही सन्ध्या की लालिमा रचती हुई, बिना किसी बहाने के प्रत्येक दिशा में निविड़ जलती हुई वाइवाग्नि की शङ्का करती हुई मेरी स्थिर खायष्टि इच्छानुसार संग्राम लीला का अनुभव करे | ||2311 इथर से, इधर से। (परिक्रमा देकर सभी निकल जाते हैं) हस्तिमल्ल के द्वारा विरचित अञ्जना पवनंजय नामक नाटक में द्वितीय अङ्क समाप्त हुआ । .
तृतीयो अङ्क
.
विदूषक -
(अनन्तर विदूषक प्रवेश करता है) वरुण की निराबाध सामग्री आश्चर्यजनक है । जो कि इतने समय तक प्रतिदिन युद्ध की भीड़ बढ़ रही है । युद्ध की धुरा सौ पुत्रों में निक्षिप्त होने से युद्ध रूपी आँगन में कदाचित् घुसा नहीं जा सकता अथवा यहाँ मित्र की प्रशंसा करना चाहिए जो इस प्रकार राजीव प्रमुख महान् बलशाली वरुण के सौ पुत्रों के परस्पर में प्रयुक्त महान विद्याओं से भयानक युद्ध के अग्रभाग में इन चार माह प्रतिदिन विशेष रूप से पराक्रम करते हुए विजय के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो रहे हैं । (सांस लेकर) यह समस्त संग्राम की घटना प्रहसित के ही दुश्चरित का परिपाक है जो इस प्रकार एक ओर इस कठिनाई से सुने जाने वाले समुद्र के घोष से, एक ओर कठोर, सन्नर सेना के कोलाहस से, एक ओर भयानक रूप से गिरते हुए सैकड़ों बाणों के शब्द से, एक
ओर कर्णकटु धनुष की प्रत्यक्षा के मुंजार से, एक और भीषण विजय दिपियम निर्घोष से कानों के समूह को बहस बनाता हुआ, रात-दिन अत्यधिक भयभीत हुआ, निद्रा के सुख को भूलकर, विश्वास पूर्वक भोजन का भी अवसर न पाकर यथार्थ रूप में रुग्ण स्थिति का आचरण कर रहा हूँ । राजपुत्र की मित्रता सर्वथा उद्वेग उत्पन्न करने योग्य है । विशेषकर यहाँ खरदूषणादि के छोड़ने का उत्साह मुझे बाधा पहुंचा रहा है, जो कि हत आशा वाले खरदूषणादि के विघ्न की आशङ्का कर शीघ्र ही वरुण के मानभा का परिहार करते हुए विद्याबल से धीरे-धीरे ही मित्र युद्ध कर रहे हैं । अन्यथा कौन प्रतिपक्षी युद्ध के अग्रभाग में मित्र के सामने मुहुर्त पर भी व्यवहार करने में समर्थ हो सकता