Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 23
________________ बनावटी मित्रकेसी-हम लोग स्वयंवरमण्डप में प्रविष्ट हो गए हैं । (चारों ओर देखकर), ओह, स्वयंवर मण्डप की उत्कृष्ट शोभा है । क्योंकि। इधर-उधर चलते हुए वन्दियों के समूह के जय शब्द के कोलाहल से मिश्रित, घबड़ाए हुए सैकड़ों द्वारपालों के द्वारा हटाने की आवाज के कोलाहल से, प्रारम्भ किए जाते हुए मङ्गल संगीत और पोटे गए कोमल मृदङ्ग की गम्भीर ध्यान से किन्नरी स्त्रियों के द्वारा बजाई गई वीणा के तार की झंकार का अनुसरण करने वाले विद्याधर स्त्रियों की गीत के स्वर से प्रवणपथ शब्दमय के समान हो रहा है । अन्त:पुर के कमरे वेत्रयुक्त से दिखलाई पड़ रहे हैं । रत्नमयी फर्श से युक्त भूमिभाग सिंहासन युक्त से दिखाई पड़ते हैं । दशों दिशायें डुलाए जाते हुए चंबर की वायु मे विखरे गए पटवास के चूर्ण से युक्त सी सुशोभित हो रही है । आभूषणों की प्रभा के समूह से युक्त सा आकाशतल सुशोभित हो रहा है । स्वयंवर मण्डप राजाओं से युक्त सा प्रतीत हो रहा है। निश्चित रूप से यहाँ मणिमय मञ्च पर गए हुए राजा लोग चारों और परिजनों से घिरे होकर इस समय मानों तुम्हारे ही आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं |12|| तो राजकुमारी इस ओषधिमाला को ग्रहान करें । (कृतक अंजना लग्जापूवंक लेती है) कृतकमित्रकेशी- (हाथ से प्रत्येक शालजिका की ओर इशारा करती हुई) यह कौशलों का नाथ है, वह मगधपति है. यह पाञ्जातराज है, यह बङ्गों का स्वामी है, यह मलयपति हैं. यह केकय देश का अधीश्वर है, यह हरिवंशियों का स्वामी है, वह कुरुराजा है, यह वल्मीक देश का राजा है । पुत्री ! इनमें से इस समय कौन तुम्हारा पति हो सकता है ||1311 (कृतक अंजना चुप रहती है)। कृतकमित्रकेशी -(दूसरी ओर जाकर नाटकीयतापूर्वक शालभजिका की ओर निर्देश करके) समस्त राक्षससमुदाय को क्षुब्य करने वाला अपनी भुजाओं के युगल के बल से खेल ही खेल में शत्रुओं के समूह को जीतने वाला, पिता के मुख के समान जिसका प्रभाव दिखाई देता है । ऐसा राक्षसों के स्वामी रावण का यह प्रियपुत्र यहाँ विद्यमान है ॥14॥ (कृतक अंजना चुप रहती है) कृतकमित्रकेती - दूसरी ओर जाकर नाटकीयतापूर्वक शालभजिका की ओर निर्देश करके) जो विशधरों में विख्यात है, समस्त विद्याओं में विशारद है ऐसा हिरण्यप्रभु का पुत्र ग्रह विद्युत्प्रभ है ।11511 (कृतक अजंना चुप रहती है) कृतकमित्रकेशी -(दूसरी ओर जाकर मुस्कराकर अंजना की ओर निर्देश कर) स्वामाविक रूप से जिसका सुन्दर शरीर है, जो गुणों का उत्पत्ति स्थल है, भगवान् कामदेव का जो प्रशंसनीय स्थान है, अधिक कहने से क्या, जो तुम्हारे योग्य है ऐसा प्रहलाद राज का पुत्र यह पवनंजय है 1116॥ (कृतक अंजना लज्जा और अनुरागपूर्वक अंजना के कण्ठ में हार छोड़ती

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