Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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अंजना - (मुस्कराकर मन ही मन) बसन्तमाला ठीक है. ठीक है ।... पवनंजय - (हर्षपूवं क न
पर विदूषक - तोक है। मधुकरिका - वसन्तमाला ठीक है, तुमने राजकुमारी के हृदय का ट्रीक पता लगाया । वसन्तमाला - राजकुमारी के पति की भूमिका को धारण करती हुई वहाँ मेरो तुम ही गुरु
हो। अंजना - (मुस्कराकर) पेरे हृदय की जान लिया । दीनों - कैसे नहीं जाना । पहले मन्दारोधान में जाना । इस समय जिसे पमीना आ
रहा है । ऐसे पुलकित अङ्गों से तुम्हार सानुराग हृदय स्पष्ट हुआ था । पवनंजय - हृदय का भली भौति अनुमान होता है क्योकि . फेलते हुए पसीने के इल
के सिंचन से अन्तरङ्ग में मानों :अनुराग अङ्कुरित हो रहा हो, इस प्रकार इसकी
अङ्गयष्टि विकसित रोमों को धारण कर रही है ||1|| अंजना - (मुस्कराकर) सामान्य हृदय सखी जनों के लिए क्या जानना कदिन है । विदुषक - मित्र । और यहां तहरने से क्या ? आओ हम दोनों चलें । पवनजय - जैसा मित्र ने कहा ।
(दोनों चले जाते हैं) वसन्तमात्ना - अधिक कहने से क्या । और मन्त्र तयार है । परनंजय यहाँ देर कर रहा
विदूपक - देर नहीं कर रहा है । यह शांघ्रता कर रहा है ।
(अंजना देखकर लग्नापूर्वक उठकर दूसरी ओर चली जाती है। वमन्तमाला और मधुरिका - (देखकर) ओह स्वामी (समीप में जाकर । स्वामी की जय
हो । पवनंजय - (मधुरिका के प्रति मुम्काकर अंजना और असन्तमाला की और निर्देश कर)
आय मिश्रकेशि, क्या पाणिग्रहण महोत्सव के बाद पवनंजय का अंजना को
छोड़कर जाने का समय है । सभी - क्या आदि में लेकर पब देख लिया । मधुकरिका - ( मुस्कराकर ) तो हाथ पकड़कर इन्हें रोको । पवनंजय - आर जैसा कहें । (अंजना के समीप जाकर, हाथ में पकड़कर, मुस्कराकर
प्राणों के समान इस व्यक्ति का नोड़कर यहाँ मे तुम्हारा जाना ठीक नहीं
हैं । निश्चित रूप से अंजना- पवनंजय की विहारभूमि है ||18|| अंजना - मन ही मन) ओह, वचनों को गम्भीरता । मधुकरिका और वमन्सपाला - (पुस्कराकर) स्वामी ने ठीक कहा । विदूषक - पाणिग्रहपा महोत्सव हो गया ।
(नेपथ्य में) राजकुमारी इधर से, इधर से । स्नान करने का समय बीत रहा है । इस समय कन्यान्तःपुर में ही आना चाहिए । प्रसाधन हाथ में लिए हुए तुम्हारो सारी मातायें प्रतीक्षा कर रही है ।