Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 26
________________ ....... ........... विदूषक - माननीया वसन्तमाला । वसन्तमाला - क्या आर्य प्रहसित है ? (समीप में जाता है) विदूषक - माननीया, मुझे बिना देखे ही क्यों जा रही है ? वसन्तमाला - मैंने आर्य को नहीं देखा । इस मृदङ्ग के सदृश कुश्क्षि से छिप गए थे । विदूषक - दासो की पुत्री, क्या तुम्हारे समान मेरा ही उदर अत्यधिक दुर्बल हो । षसन्तमाला - हम तुम्हारे सदृश पाने वाली कौन होती है । आर्य आप बैठे | कैसे आप यहाँ बैठे हुए है ? विदूषक - माननीया, मित्र को आज्ञा से उन्हें बुलाने के लिए आता हुआ इस कठिनाई से भरे जाने वाले पेट के भार ले आक्रान्त होकर मुहूत पर के लिए यहाँ बैठा हुआ हूँ। वसन्तमाला - आर्य, आज तुम्हारा यह विशेष रूप से बढ़ा हुआ और कठिनाई से भरा जाने वाला उदर कहाँ से है ? (मुस्कराकर) क्या बढ़ा पेट है अथवा गर्भ है । विदूषक - अरी कुम्भदासी, ऐसा नहीं है । बीत रात मैंने भी अनुदारता पूर्वक उन माननीया के अपने हाथ से दी हुई स्वस्तिवाचन पूर्वक पूरियों से यह पेट भर दिया था । आज पुनः प्रात:काल स्वामिनी के द्वारा अन्त:पुर में जीरे और मिर्च की बहुलता बाला दही से मिश्रित नाश्ता खा लिया । तुम इस समय कहाँ जाओगी? वसन्तमाला - इस समय स्वामी कहाँ है, यह जानने के लिए कुमार के भवन में जा रही (नेपथ्य में) उधान के दो अध्यक्ष - अरे अरे, उद्यान के अधिकारी समस्त पुरुषों, आप लोग मुनिए। पहला - __ सरस मलय वायु को छय से युक्त प्रमदवन के मध्य चित्रमण्डपों में मणिनिर्मित शालमञ्जिकाओं के स्तनकलशों में पुन: लेप लगा दीजिए ||1|| दूसरी बात यह कि - निरन्त अत्यन्त मात्रा में मिले हुए कपूर के चूर्णों से जिनके पत्तों के समूह विकसित हैं ऐसी केतकियों के पराग से उपवन के तालाबों के तोरवर्ती औपन में शीघ्र ही इच्छानुसार रेतीले तट बनाओ 1121 द्वितीय - विशेष रूप से दर्शनीय उपवन की वृक्षों के नीचे के चबूतरों पर मरकत मणि से निर्मित फर्शों पर नए-नए कुङ्कम के पराग में पत्र रचना कर दो |3|| और भी - सुगन्धित फूलों की गन्ध को प्रकट करने वाले जल के प्रवाह से जिसका परिसर भरा हुआ है, ऐसे नवीन अशोक वृक्षों के थादलों से युक्त ग्रहते हुए चन्द्रकान्त मणि से युक्त फव्वारों (धाराग्रहों) में तत्क्षण ही भली प्रकार कृत्रिम नहरों को तैयार करी 11414 (दोनों सुनते हैं) वसन्तमाला - आर्य, यह क्या है? विदूषक इस समय माननीया के साथ प्रिय मित्र प्रमदवन के मध्य यकुल उद्यान में प्रवेश कर रहे हैं अत: उद्यानाध्यक्षों के द्वारा समस्त प्रमदवन भूमि सजाई जा रही है । अत: शीघ्र ही जाकर तुम वहाँ पर उन्हें लाओ । मैं भी प्रिय मित्र के समीप जाऊँगा ।

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