Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 18
________________ अरिंदम - प्रस्तावना (अनन्सर अरिंदम प्रवेश करते हैं) पिताजो ने मुझे आज्ञा दी है कि वत्स अरिंदम पुत्री अंजना के स्वयंवर महोत्सव के लिए बुलाए गए पवनजन्य, विद्युत्प्रभ मेघनाथ प्रमुख राजपुत्र इस समय हमारे नगर में प्रवेश कर रहे है । तो इस समय नगरी के प्रसाधन के लिए तथा राजाओं की अगवानी करने के लिए तुम्हें ही सावधान होना चाहिए। (चारों ओर देखकर) यह हमारे आदेश नगरी विशेष रूप से निर्मल बना दी गई है । जैसे कि अत्यधिक उत्सुक नगर निवासियों ने इन समस्त घरों के ऊपर ध्वजायें फहरा दी हैं। इस समय मणिनिर्मित फों के चारों ओर द्वारों पर वन्दनमालिकायें लगा दी है । (परिक्रमा देकर और देखकर) ओह. कैसे इस समन्त्र यहाँ नगर के बीच की चौड़ी सड़क को पारकर समस्त दिशाओं से आए हुए अपनी सेना के समूह की भोड़ के कोलाहल में दशों दिशाओं को रोके हुए दिक्पालों के समान राजा लोग गली में ही प्रवेश कर रहे हैं। (देखकर) यह कौन राजमार्ग का उल्लंघन कर प्रमदवन के सम्मुख अन्तःपुर की रखवाली करने वाले सेवकों के द्वारा भीड़ हटा दी जाने पर श्रेष्ठ घोड़े से उतरा है । (देखकर) ओह, तात के परम् मित्र प्रहादराज का यह पुत्र है । परिमिः. याला,नगादियामि हासन नाप-लवे मान सादरपूर्वक देखा गया. इस समय प्रमदावन में पैदल क्रीड़ा करता हुआ सुन्दर कान्ति रूमी लक्ष्मी को धारण करता हुआ प्रवेश कर रहा है । (सोचकर) पहले यहीं मिलते हुए स्वागत संकथा से, कुशल प्रश्न पूर्वक सुखपूर्वक वार्तालाप करते हुए औपचारिकता से मेरा बहुत समय बीत जाएगा। अत: इस समय समीपवर्ती शेष कार्य की परिसमाप्ति पर पुनः इसे देखंगा। इस प्रकार चला जाता हैं) शुद्ध विष्कम्भः (अनन्तर पवनंजय और विदूषक प्रवेष करते हैं) मित्र , यह उद्यान रमागीय है । अतः यहीं पर मुहूर्त भर के लिए विश्राम कर पश्चात् आवासस्थल की ओर चलते हैं । ऐसा हो हो । यहाँ पर महाराज प्रहलाद और महेन्द्रराज को चिरकाल मे वृद्धि को प्राप्त मैत्री से आत्मीय होने पर भी हम दोनों प्रमदवन के प्रदेशों में विश्वासपूर्वक विहार करें । अत: प्रिय मिन्न इघर आईए, इपर आइए । (घूमते हैं) (देखकर) अरे प्रमदवन की उत्कृष्ट शोभा आश्चर्यजनक है। भौरों की झंकार रूप प्रत्यंचा का शब्द हो रहा है । तीक्ष्ण धारों वाले ये कामदेव के बाण भी गिर रहे हैं । यह सखा वसन्त स्वयं बगल में स्थित है । यह पुष्मरूप बाणों को झुकाए हुए कामदेव सदा जोश में भरा हुआ घूमं रहा है || पवनंजय - विदूषक - पवनंजय - यहाँ पर -

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