Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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नाटक
चराचर गुरु, जिसके सामने आदि में सोत का आरम्भ किए हुए इन्द्र ने क्रम से नाट्यरसों का अभिनय करते हुए ताण्डव नृत्य किया । जिस वाणी के ईश्वर से अचिन्त्य महिमा वाली आरती प्रकट हुई । पुराण कवि श्रीमान् वह मुनिसुव्रत आपको कल्याण प्रदान करें (1)
(नान्दी पाठ के अन्त में) सूत्रधार .. अतिप्रसङ्ग से बस करो । मारिष, जरा इधर आओ ।
(प्रवेश करके) पारिपाश्विक - महानुभाव, यह मैं हूँ । सूत्रधार - मुझे परिषद ने आज्ञा दी है कि आज तुम सरस्वती के द्वारा स्वयं पति के
रूप में वरण किए गए भट्टारक गोविन्दस्वामी के पुत्र आन्यं श्री यार. सत्यवाभ्य, देवरवल्लभउदय भूषण आर्थमिश्र के अनुज कवि वर्द्धमान के अग्रज कवि हस्तिमल्ल के द्वारा रने गए विद्याधरचरित का जिममें निबन्धन किया गया
है, ऐसे अंजनापक्नजय नामक नाटक का अथावत् प्रयोग करना है । पारिपाश्विक - महानुभात्र, परिषद् का इस नाटक के विषय में बहमान बदों है ? सूचार - निश्चित रूप से कवि परिश्रम ही यहाँ कारण है क्योंकि समोचीन वागी हो.
अत्यधिक सरल कोई अपूर्व रचना हो, वचन की युक्ति उत्कृष्ट हो, परिषद की आराधना करने वाला कवि हो, बिना चबाया हुआ. बाद तथा जो परम गूढ़ न हो, ऐसा रस हो, इस प्रकार कवियों की मानो शीघ्र ही किसको
चलित नहीं करती है ? अर्थात् सभी को करती है ।।2।। पारिपार्श्विक – बात यही है । कवियों का अन्तिम छोर नाटक होता है. यह बात सत्य है। सूत्रधार - तो इस समय संगीत का आरम्भ किया जाय । पारिपार्श्वक - तो विलम्ब क्यों किया जा रहा है । ये महेन्द्र के पुत्र अरिंदम अपनी छोरी
बहिन अंजना के चारों ओर से स्वयंवर महोत्सव के लिए नगर के समीप में आए हुए राजा लोगों की समुचित सत्कार के साथ अगवानी करने के लिए महाराज महेन्द्र के द्वारा नियुक्त होकर नगर की सजावट के लिए नागरिकों को प्रोत्माहित करते हुए इधर ही आ रहे हैं । इस महोत्सव में हम लोगों को भी वेषभूषा वगैरह ग्रहण करने का उचित ही अवसर है । हम लोग कैसे सजाए हुए स्वयंवर मण्डप में पहुँचकर कुशल नटों के माध सङ्गीत
आरम्भ करें। पारिपायक - महानुभाव जैसी आज्ञा दें।
(इस प्रकार दोनों चले जाते हैं )