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विषय-सूची
वीरसेवा मन्दिर का अभिनव
. प्रकाशन
क्र०
विषय
१. शान्तिनाथ-स्तोत्र
चिर प्रतीक्षित जैन लक्षणावली (जैन पारिभाषिक | २. भारतीय परम्परा में अरहन्त की प्राचीनता -
शब्दकोष) का प्रथम भाग छप चुका है। इसमें लगभग ___ मुनिराज श्री विद्यानन्द जी महाराज
४०० जैन ग्रन्थों से वर्णानुक्रम के अनुसार लक्षणो का ५०-५२
संकलन किया गया है । लक्षणों के सकलन में ग्रन्थकारों ३. जैन चित्र-कला-डा० वाचम्पति गैरोला ५२
के कालक्रम को मुख्यता दी गई है। एक शब्द के अन्तर्गत ४. स्याद्वाद-दर्शन-साहित्य परामर्षक
जितने ग्रन्थो के लक्षण संग्रहीत है उनमें से प्रायः एक मुनिश्री बुद्धमल जी५३-५६ । प्राचीनतम ग्रन्थ के प्रनमार पोक
५३-५६ । प्राचीनतम ग्रन्थ के अनसार प्रत्येक शब्द के अन्त में ५. राजस्थान के जन कवि और उनकी रचनाये हिन्दी अनुवाद भी दे दिया गया है । जहाँ विवक्षित लक्षण __ --डा० गजानन मिश्र एम ए पी-एच. डी ५६-५६ | में कुछ भेद या होनाधिकता दिखी है वहाँ उन ग्रन्थों के ६. भारतीय दर्शन में योग
निर्देश के साथ २-४ ग्रन्थों के प्राश्रय से भी अनवाद साध्वी श्री अशोकश्री जी
किया गया है। इस भाग मे केवल 'प्र से प्रौ' तक लक्षणों
का संकलन किया जा सका है। कुछ थोड़े ही समय में ७. लंका मे जैनधर्म--श्री महेन्द्रकुमार दिल्ली ६४
इसका दूसरा भाग भी प्रगट हो रहा है, वह लगभग ८. कौशाम्बी-५० बलभद्र जैन
६५-७२
तैयार हो चुका है। प्रस्तुत ग्रन्थ संशोधकों के लिए तो ६. नाथ निरंजन पावे--कविवर अानन्दघन
विशेष उपयोगी है ही, साथ ही हिन्दी अनुवाद के रहने से १०. वैराग्योत्पादिका अनुप्रेक्षा-- सकलनकर्ता
वह सर्वसाधारण के लिए भी उपयोगी है। प्रस्तुत प्रथम श्री १० वशीधर शास्त्री एम. ए ७३-८० | भाग बड़े आकार में ४२५ पृष्ठों का है। कागज पुष्ट व ११. कवि वर्द्धमान भट्टारक ----
जिल्द कपड़े को मजबूत है । मूल्य २५-०० रु० है। यह प० परमानन्द शास्त्री
८०-८२
प्रत्येक यूनीवसिटी, सादंजनिक पुस्तकालय एवं मन्दिरों मे
संग्रहणीय है। ऐसे ग्रन्थ बार बार नहीं छप सकते। १२. स्मृति-प्रखरता के प्रकार
समाप्त हो जाने पर फिर मिलना अशक्य हो जाता है। मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी प्रथम ८३-८४
प्राप्तिस्थान १३. कलाकार की साधना (कहानी) ..
वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, श्री 'ठाकुर' ८५-६१
दिल्ली-६ १४. तीर्थकर और प्रतीक-पूजा--- प० बलभद्र जैन ११ से टा० पृ० ३
सम्पादक-मण्डल डा० प्रा० ने० उपाध्ये डा० प्रमसागर जैन
थी यशपाल जैन अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया
अनेकान्त में प्रकाशित विचारो के लिए सम्पादक एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पैसा मण्डल उत्तरदायी नहीं है ।
-व्यवस्थापक