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* अनेकान्त *
मद्य मांस मधु त्यागे सहालु क्त पंचकम् ।
सोमदेवाचार्य के (१०१६) के उपासकाध्ययन में प्रष्ट प्रष्टोमूल गुणाना हिणां धमणोत्तमा । मूग गुणो मे तीन मकारा (मद्य, मांस, मधु) के त्याग के
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४-६६) साथ पञ्च उदम्बर फलो का त्याग भी बतलाया है। प्रोर प्राचार्य जिनसेन के बाद अष्टमूल गुणो में पांच अणू
इनके उत्तरवर्ती विद्व न् अमितगति, देवसन, पद्मनन्दि, व्रतो के स्थान पर पच उदम्बर फनी के त्याग को शामिल माशाधर मादि ने भी स्वीकृत किया है। किया गया है। दशवी शताब्दी के अमृतचन्द्राचार्य के
कवि धनपाल ने प्राचार्य अमृतचन्द्र मे प्रष्ट मूल गुणो पुरुषार्थ सिध्युपाय के निम्न द्य में प्रष्ट मूल गुणों में पच
को ग्रहण किया है । यदि यह मान लिया जाये तो धनपाल उदम्बर फलों का त्याग बतलाया है:
का समय दशवी शताब्दा का अन्तिम चरण अथवा ग्यारमचं मांसं क्षौद्र पञ्चोदुमार फलानि यत्नेन ।
हवी शताब्दी का प्रथम चरण हो सकता है। वे इसके बाद हिसा व्युपरति काम मोक्तव्यानि प्रथममेव ॥
के ग्रन्थकार नहीं है। (पुरुषार्य सिध्युपाय ३-६१)
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प्राचीन जैन मन्दिर खजुराहो