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अंजना
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अपने पैरों आप कुल्हाड़ी,
मारी किसको कहिए हाल ।
समझा बुझा इन्हें प्रतिमूरज,
कहने लगा करो मत देर । खोज लगावे भली भाँति से,
लाव शीघ्र पवन को हेर ॥
(११७) सभी चले नप महेन्द्र को भी,
अपने सँग में बुलवाया। खोजा जहाँ तहाँ अाखिर में,
सघन गहन वन में पाया।
ध्यान लगाकर उस जगल में,
बैठा था निश्चल होकर । प्रिये प्रिये मन में रटता था,
दिखता था कोरा पजर ।।
मामी-ससुरा भी देखा। देखा सब कुछ पर न प्रिया को,
इधर उधर झोंका देखा ।।
(१२२) प्रतिसूरज ने कहा “कृपाकर,
सब मेरे घर को चलिए। वहाँ अंजना बाट देखती
होगी, उसका दुग्व हरिए ।”
(१२३) हनुद्वीप को सभी गये तव,
हुअा वहाँ पर मॅगलाचार। मिली अंजना निज स्वामी से,
सुखी हुआ सारा परिवार ॥
(१२४) बेटा पुत्रवधू पोते को,
पाकर केतुमती-प्रह्लाद । कवि की कलम न कह सकती है,
कैसा हुआ उन्हें प्राह्लाद ।।
(१२५) प्रतिसूरज त्यों महेन्द्र नृप के,
अानद का कुछ रहा न पार । सती अंजना के सतीत्व को,
मान गया सारा ससार।
(१२६) प्रानदमंगल छाया सब में,
हा प्रशसित शीलसिगार। सती अजना का अति सुदर,
छाया जग में जयजयकार ॥
कहा पिता ने प्यारे वेटा,
उठो उठो वया करते हो। माता पिता श्वसुर सब जनका,
दुख क्यो नहि उठ हरते हो ।
(१२०) "प्यारी-प्यारी प्रिये अजना,
आ. मिल,' सहसा बोल उठा। पर जब देखा पुज्य पिता को..
सकुचाया नत होय उठा ।।
(१२१) माता देखी ससुरा देखा,