Book Title: Anekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 270
________________ जैन तत्त्वमीमांसा की मीमांसा भाग १ - लेखक पं० बंशीधर जी व्याकरणाचार्य, बीना, प्रकाशक दि० जैन संस्कृति सेवक समाज ( बरैया ग्रन्थमाला), पृ० २२+० + ३८५, साइज २०X३० क्राउन १६ पेजी मूल्य चार रुपये । जैसा कि प्रस्तुत पुस्तक का नाम है, वह श्रीमान् पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री के द्वारा लिखी गई 'जैन तत्वमीमांसा' की समीक्षा के रूप में लिखी गई है। पुस्तक मे समीक्षा को आधार बनाकर यद्यपि साधारणरूप मे निमित्त-नमित्तिकभाव की विशेष चर्चा की गई है, फिर भी यथाप्रसंग उसमे तत्त्वविचार भी विस्तार से किया गया है । जैसे ज्ञान-दर्शन, प्रत्यक्ष-परोक्ष, भव्यव प्रभव्यव, जीवो व पुदगलो की बद्ध-स्पृष्टता, निश्चय व्यवहार तथा द्वव्यानुयोगादि की स्थिति का विश्लेषण । इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक मे यथाप्रसंग कई महत्वपूर्ण दिपयों की चर्चा की गई है, अत वह तत्वाधो के लिए अवश्य पठनीय है। उस्त दोनो पुस्तकों के लेखक समाज के माने हुए विद्वान् है । सोनगढ़ की तत्त्वव्यवस्था का प्रचार होनेपर दोनो विद्वानो में मतभेद हुआ है। चिन्तनशील विद्वानों को जैनतत्वमीमांसा और जनतत्त्वमीमासा की मीमांसा इन दोनों ही पुस्तकों को वीतरागभाव से पढ़कर तत्त्व का निर्णय करना चाहिये । पुस्तक के लेखक व प्रकाशक को साधुवाद है । जैनदर्शन में कार्य कारणभाव और कारक व्यवस्था लेखक व प्रकाशक उपर्युक्त प्राकार २०X३० काउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या लगभग १५० मूल्य १-६० पैसा प्रस्तुत पुस्तक में कर्ता-कर्म आदि छह कारकों का विचार करते हुए कार्य कारणभाव का अच्छा विवेचन किया गया है । प्रसंगवश निमित्त व उपादान की चर्चा करते हुए निमित्त की सार्थकता सिद्ध की गई है। साथ ही स्वप्रत्यय कार्य कौन है व स्व-परप्रत्यय कार्य कौन हैं, इनका विश्लेषण करते हुए उपादान- उपादेयभावरूप कार्यकारणभाव व निमित्तनैमित्तिकभावरूप कार्य-कारणभाव इस प्रकार कार्य कारणभाव को दो भेदो मे विभक्त किया गया है । पुस्तक उपयोगी व पठनीय है। उसके लेखक व प्रकाशक धन्यवादाह है । - बालचन्द्र शास्त्री आवश्यक सूचना अनेकान्त शोध पत्रिका आपके पास नियमित रूप से पहुँच रही है। म्राशा है आपको इसकी सामग्री रोचक एवं उपयोगी लगती होगी। यदि इसकी विषय सामग्री के स्तर तथा उपयोग को ऊंचा उठाने के लिए आप अपना सुझाव भेजें तो हम उसका सहर्ष स्वागत करेंगे। जिन ग्राहकों का हमें पिछला वार्षिक चन्दा प्राप्त नहीं हुआ है, उन्हें हम यह अंक वी० पी० द्वारा भेज रहे हैं। माशा है आप बी० पी० छुड़ा कर हमें सहयोग प्रदान करेंगे। - सम्पादक

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