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२३६ वर्ष २६, कि०६
अनेकान्त
प्रतिमानों को देखकर पार्यचकित हो जाना स्वाभाविक अकन केवल वाह्य भाग पर ही प्राप्त होता है। मू ही है। अन्य मूर्तियों में मकरवाहिनी गंगा एवं कर्मवा- एक पर एक तीन कतारों में अकित हैं। उर्ध्व भाग हिनी यमुना के साथ चतुर्भुज द्वारपालों का अंकन है। लघु कतार में गंधर्व, किन्नर एवं विद्याधर तथा शेष गंगा एवं यमुना की प्रतिमानों के ऊपर की पंक्ति में कतारों में शासन देव, अप्सराओं आदि की मूर्तियां तोरण तक गंधर्व, यक्ष आदि की प्रतिमायें हैं। द्वार के प्रतिमाओं की इस बीच की कतारों में देव कुलि ऊपरी तोरण पर द्वादशभुजी चक्रेश्वरी एवं दोनों पाव निर्मित कर शासन देवियों को ललितासन मुद्रा में प्र पर जिन शासन देवियों की मूर्तियां है। जो दोनो पोर किया गया है। नवगृहों से आवेष्टित है। मुख्य तोरण के ऊपर शीर्ष तोरण में युगादि देव एवं दो अन्य तीर्थङ्करों की प्रति
जैन धर्म के वाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ की । मायें हैं। इसके अतिरिक्त दो अर्हत प्रतिमाओं एवं साधुओं
अम्बिका सिंहारूढ़ आम्र वृक्ष के नीचे आम्र मंजरी ध का अंकन भी है।
किये हुए शिशु को स्तनपान कराती हुई दिखाई गई
तीर्थकर की मां एवं मां के सोलह स्वप्नों का अ प्रादिकाल देवालय की बाह्य भित्ति एवं शान्तिनाथ
यहाँ पर दिया हुआ है। इसी देवालय में जैन घर के देवालयो की कला भी उत्तम कोटि की है। शान्ति
प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ अथवा ऋषभनाथ नाथ देवालय के प्रांगन मे धरणेन्द्र एवं पद्मावती की एक
प्रतिमा है। सुन्दर युगल प्रतिमा प्रतिष्ठित है। देवालय की भित्त पर देवी-देवताओं तथा अप्सराओं की कृतियों के साथ व्याघ्र
शान्तिनाथ मन्दिर मे मूलनायक सोलहवें तीर्थ की मतियाँ भी बनी हुई है। सिंहाकृति से मिलने-जलते भगवान शान्तिनाथ की विशाल प्रतिमा है । शान्ति इस जानवर का प्रतीक रूप मे वहतायत से अंकन हमा की १२' ऊँची यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। मं है। प्रदक्षिणा पद की भित्ति पर भिन्न-भिन्न जिन शासन
के आँगन में वाम पार्व की ओर दीवाल पर २३वें तं देव एवं देविवों, गंधर्वो, किन्नरों एवं अप्सरानों की सौंदर्य- कर पार्श्वनाथ के यक्ष एवं यक्षिणी धरणेन्द्र एव पद्मा मयी मूर्तियाँ खचित है। बाहबली स्वामी की भी यहाँ की एक आकर्षक एव सौन्दर्यमयी प्रतिमा है। इस प्रति एक प्रतिमा अंकित है। इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त में यक्ष दम्पत्ति को एक आसन पर ललितासन में अ अलसित वदन शृंगादि का, कामिनी और सूर-मन्दरियों दित बैठे हुए दिखाया गया है। इनके हाथों में श्री की मद्रायें विशेष आकर्षक है। निकट ही एक नाई के है। देवी के हाथ में एक छोटा शिशु भी विखाया । द्वारा एक सुन्दरी के पैर से कांटे को निकालते हुए दिख- है। लाया गया है।
भगवान शान्तिनाथ की मूर्ति के परिकर मे द गर्भगृह में भीतरी पट की ओर गंगा-यमुना एवं द्वार
पार्श्व में पाश्वनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमाये है। पा पाल प्रादि है। द्वार तोरण पर ललाट बिम्ब में भगवान
नाथ के अतिरिक्त अन्य तीर्थकरों को दस प्रतिमायें । चन्द्रप्रभु है। जिनके दोनों पार्श्व पर कायोत्सर्ग तीर्थकर
उत्कीर्ण है। नीचे सनत्कुमार एवं महेन्द्र नामक । की प्रासन मूर्तियां है। उनके मध्य में नवग्रह एवं चमर-
चामर धारण किये हुए विखाये गये है।
चामर धारिणी, यक्षियों के बीच तीर्थंकरों की प्रतिमायें है जिनमें खजुराहो का जैन देवालय जिसे घण्टई मन्दिर : से ५ पद्मासन एवं ६ कायोत्सर्ग आसन में है। वेदिका जाता है खण्डहर अवस्था में है। इसमें तीर्थकर मूर्ति पर दोनों पाव में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमायें है। शासन देवियां, विद्याधर एवं नवगृहों आदि की मूर्ति
आदिनाथ देवालय में भित्तियों पर मूर्तियों का का सुन्दर मंकन है ।