Book Title: Anekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 266
________________ जैनधर्म संसार की दृष्टि में मैं विश्वास के साथ यह बात कहूंगा कि महावीर भावना अहिंसा और प्रेम के आधार द्वारा प्रकट करना यह स्वामी का नाम इस समय यदि किसी सिद्धान्त के लिए "श्री महावीर" का उद्देश्य समझना है। पूजा जाता है तो वह अहिंसा है। अहिंसा तत्व को यदि - -श्री जी.वी. मावलंकर प्रेसीडेंट किसी ने अधिक से अधिक विकसित किया है तो वे अहिंसा और सर्व-धर्म समभाव जैनधर्म के मुख्य महावीर स्वामी थे। सिद्धान्त हैं। -स्व० महात्मा गांधी -मेजर जनरल रायबहादुर ठा० अमरसिंह जैनों का अर्थ है संयम और अहिंसा। जहा अहिसा है वहां द्वेषभाव नहीं रह सकता। दुनिया को यह पाठ अाजकल के बिगड़े हुए वातावरण में जबकि जातीय पढ़ाने की जवाबदारी आज नहीं तो कल अहिंसात्मक भावनायें अपना भयंकर रूप धारण कर देश को हिंसा संस्कृति के ठेकेदार बनने वाले जैनियों को ही लेनी पड़ेगी। की ओर ले जा रही है तब भ. महावीर की महिंसा सर्व -सरदार वल्लभभाई पटेल धर्म की एकता का पाठ पढ़ाती है। हिन्दु संस्कृति भारतीय संस्कृति का एक अंश है, और -श्री पं० देवीशंकर जी तिवारी जैन तथा बौद्ध यद्यपि पूर्णतया भारतीय है परन्तु हिन्दू जैन धर्म के आदर्शों का प्रचार करना यह मानव नही हैं। मात्र का उद्देश्य होना चाहिए। -पं. जवाहरलाल जी नेहरू (डिस्कवरी आफ इडिया) -सर टी. टी. कृष्णमाचारी श्री महावीर जी के उपदेशों पर अमल करने से ही It is impossible to find a beginning for वास्तविक शान्ति प्राप्त हो मकती है। इस महापुरुष के Jainism. Jainism thus appears as the earliest बताये हुए पथ का अनुसरण कर हम शांति लाभ कर faith of India. सकते है। आज के संघर्षशील और अशात संसार से हम In, The short studies In Science of Comसाधु पुरुष के उपदेशों पर ही चलकर सुख शांति प्राप्त prative Religious. By G. J. R. Furlong. कर सकते हैं। The names Rishabha, neami etc are wel. known in Vedic Literature. The members of समोर साना साना Jains order are known as Nirgranthas. वे २४वें अवतार थे, इनके पहिले ऋषभ, नेमि, पाव In Historical Gleaninys bp Dr. Bimalcharan. प्रादि नाम के २३ अवतार और हुए हैं, जो कि जैनधर्म जैनधर्म भारत का एक ऐसा प्राचीन धर्म है कि को प्रकाश में लाये थे, इस प्रकार इन २३ अवतारों के जिसको उत्पत्ति तथा इतिहास का पता लगाना एक बहत पहिले भी जैनधर्म था, इससे जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध ही दुर्लभ बात है। होती है। -मि० कन्लोमल जी एम. ए. सेशन जज -स्व. लोकमान्य तिलक पार्श्वनाथ जी जैनधर्म के आदि प्रचारक नहीं थे, महावीर का सन्देश हृदय में भ्रातृभाव पैदा करता है। इसका प्रचार ऋषभदेव जी ने किया था। -हिज एक्सलसी मर अकबर हैदरी गवर्नर, प्रासाम -श्री वरदकांत जी एम. ए. मानवता की बुनियाद पर स्थित हुई विश्वधर्म- सबसे पहिले भारत में ऋषभदेव नामक महर्षि उत्पन्न

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