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चाणक्य के धर्म पर कथित शोध नई नहीं है
रमाकान्त जैन, वी० ए० साहित्य रत्न
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता के प्रधानमन्त्री श्री कन्हैया लाल दुगड द्वारा प्रचारित तथा मुनि महेन्द्रकुमार प्रथम द्वारा रचित लेख ऐतिहासिक नई शोध- क्या चाणक्य जैन था ? ' की साइक्लोस्टाइल प्रति देखने को मिली। जनभारती, श्वेताम्बर जैन वीर वाणी आदि पत्रो मे भी वह लेख प्रकाशित हुआ है ।
इस लेख मे मुनि जी ने यह दावा किया है कि चाणक्य के जैन होने की बात और उसे प्रमाणित करके जैन साहित्यिक साधन सामग्री की ओर ध्यान आकर्षित करने का कार्य सर्वप्रथम उन्होंने किया है, अन्य किसी जैन
अभी-अभी मुझे भी ऐसा लगा था पर तुम जानती हो यह मेरा रक्षाकवच है ।
अब नीरु के निष्प्रभ होने की बारी थी । पर वह मुस्कराती हुई बोली इतने दिन बाद एक सशोधन की बात मुझे सूझती है । क्या ?
यही कि यह रक्षाकवच नही है । तो ।
स्नेहकवच |
विश्वनाथ एक बार तो जैसे नीरु को देखता ही रह गया। कुछ सूझा ही नही। तब तक नीरु ने उसके हाथ के राखी बांध दी और पुरानो राखी लेकर बोली यह मै रखूंगी। तुम ठहरै निर्मोही । तुम्हे भूत भविष्यत से क्या काम ?
और कहकर नीरु खिलखिला पड़ी। तभी उसके पति और विश्वनाथ की पत्नी ने यहाँ प्रवेश किया । पत्नी बोलो ननद जी । क्या मिला है ?
अमूल्य रत्न ।
और तब धूप सी खिलती हुई नीरु ने हाच धागे बढ़ा कर वह राखी दिखा दी ।
विद्वान की दृष्टि इस ओर तक अभी नही गई, अतएव यह उनकी ही नई शोध है । इस सम्बन्ध में मै मुनि जी तथा उनके लेख के पाठको का ध्यान इस तथ्य की ओर ग्राकपित करना चाहूंगा कि गत चालीस वर्षों में कई प्रसिद्ध इतिहास विद्वान इसी प्रसंग पर पर्याप्त प्रकाश पहले हो डाल चुके है, यथा - मुनि श्री न्याय विजय जी अनेकात (वर्ष २, किरण, नवम्बर, १९३८, पू० १०५ - ११५ ) में प्रकाशित अपने लेख 'चाणक्य और उसका धर्म' मे, प्रो० सी० टी० चटजी ने बी० मी० साहा बाल्यूम में प्रकाशित अपने लेख 'अर्ली लाइफ ग्राफ चन्द्रगुप्त मौर्य मे डा० ज्योति प्रसाद जैन ने जैन सिद्धान्त भास्कर, ( भा० १५, कि० १ जुलाई १९४५ ५० १७-२४) में प्रकाशित अपने लेख 'चन्द्रगुप्त चाणक्य इतिवृत्त के जैन साधार में तथा अपनी पुस्तक 'भारतीय इतिहास एक दृष्टि' (भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी से प्रकाशित प्रथम मस्करण १६६१, द्वितीय संस्करण १९६६, पृ० ७६ ६० और वा० कामना प्रसाद जैन ने १९६४ में (विग्य जैन मिशन लीग टा से) प्रकाशित अपनी पुस्तक 'दि रिलीजन ग्राफ तीर्थकराज' ( पृ० १३३ ) मे – सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के राजनीति गुरु एव मन्त्री तथा सुप्रसिद्ध 'अर्थशास्त्र' के रचयिता चाणक्य के धर्म तथा उसके सम्पूर्ण इतिवृत्त पर श्वेताम्बर एव दिगम्बर साहित्य मे निवद्ध अनुश्रुतियो के आधार से प्रभूत प्रकाश पहले ही डाला हुआ है। मुनि श्री महेन्द्र कुमार जी ने भी प्रायः उन्ही सब स्रोतो के आधार से प्रायः उन्ही तथ्यो का निरुपण किया है।
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सम्भव है, मुनि श्री की दृष्टि में इस विषय पर उनसे पूर्व अत्यन्त विद्वानों द्वारा किया गया कार्य नहीं था पाया। शायद इसीलिए उन्होंने उसका उल्लेख नहीं किया और उसे अपना ही आविष्कार एवं 'नई सोध' समझकर प्रचारित किया है।