Book Title: Anekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 170
________________ कलकत्ते का कार्तिक महोत्सव १४७ कि जिन शासन की प्रभावना मे रथयात्रा महोसत्व कितना मशिदाबाद से मगवाये जाते थे। इसकी विशिष्ट प्रावमहत्त्वपूर्ण है। श्यकता अनुभव कर तत्कालीन सघ ने बडा ही मनोज ___ कलिकाल सर्वज्ञ भगवान हेमचन्द्राचार्य ने परिशिष्ट और कलापूर्ण समवशरण भी बनवा लिया जिसका विवरण पर्व मे श्री आर्य मुहस्ति सूरि के प्रवन्ध मे रथयात्रा का प्रा लिया जायगा।। जो विशद वर्णन दिया है और सम्राट अशोक के पौत्र कलकत्ते का कार्तिक-महोत्सव-जैन रथ यात्रा-उत्सव गप्रसिद्ध जैन सम्राट सम्प्रति की अनन्य भक्ति और जिन- भारत विख्यात वार्षिक पर्व है। इस मनोहर और प्रभाशामन की महती प्रभावना का, जनता जनार्दन के उल्लास वोत्पादक उत्मव को प्रत्येक दर्शक आजीवन नही भुला पूर्ण गीतनत्य, वादित्रादि भक्ति का चित्र खीचा है उसको मकता । यो तो कलकत्ता में आये दिन बगाली, सिक्ख, श्रवण करने से ही हृदय की उमियाँ भक्तिगित हो उछलने क्तिगत हा उछलन मस्लिम, हिन्दू व इतर समाज के नाना प्रकार के जलस अपने कितने दुष्टकृत्य- निकलते ही रहते है. पर कात्तिक-महोत्सव की विशालता, कल्मष का नाश किया और मम्यग्दर्शन प्राप्त कर मोक्ष और व्यापकता और सुव्यवस्था अनूठी होने के कारण पथारूढ हुए, इसका महज अनुमान किया जा सकता है। कोई भी उत्सव इसके समकक्ष नही पा सकते । श्वेताम्बर इसी प्रकार परमाहत महागजा कुमारपाल के द्वाग और दिगम्बर उभय समाज का मिल कर लगभग एक निर्मित रथयात्रा का वर्णन भी अत्यन्त प्रशस्त और मील लम्बा जलूस हो जाता है। दर्शको को पहिले से प्रभावोत्पादक है। प्रवन्ध न करने पर बैठने के लिए स्थानप्राप्ति भी दुर्लभ बगला देश में देवीपूजा का प्रचार बहुत अधिक है। हो जाती है। मडको पर उभय पक्ष के जूलूस में जनता पाये दिन पूजामो का आयोजन होता है और मृत्तिका जनार्दन नदी की भॉति उमड पडती है और घण्टों तक निर्मित नई-नई प्रतिमाएँ पूजा अनुष्ठान के पश्चात् विस- आत्मविभोर होकर निनिमेष दृष्टि से जुलूस का निरीक्षण जित करने के लिए गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निका- करती रहती है। मकानो की छतें, वरामदे, प्रवेशद्वार, लते है एव जगन्नाथ जी के रथ की सवारी भी छोटे-बड़े गलियो के महाने, गाडियो की छतें, वृक्षो की शाखाएँ सैकड़ो रथो के जलूस निकाले जाते है। लोगो के सामने अोर विद्युत् स्तभ भी दर्शको से लदे हुए प्रतीत होते हैं । जिन-जिन देवी देवतानो की प्रतिमाएँ पाती है उनके धर्म श्री पार्श्वनाथ भगवान् के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त श्रीधर्मव जीवनवृत्त प्रादि से जनता परिचित होकर प्रभावित नाथ स्वामी की शोभायात्रा और राय बद्रीदास बहादुर होती है । बंगाल की इस प्रथा के अनुसार हर धर्म वालों द्वारा निर्मापित श्री शीतलनाथ जिनालय के कारण जैनको अपने धर्म की प्रभावना के हेतु अपने पर्व तिथियो मे धर्म को बगाल का बच्चा-बच्चा जानता है। बद्रीदास जी रथयात्रा महोत्सव निकालना आवश्यक था और यहाँ जब के बगीचे के किसी भी समय जाकर देख लीजिए, दर्शको मन्दिर और दादावाडी का निर्माण हो गया तो मघ ने का मेला लगा हा मिलेगा, जिममे फगाली स्त्री-पुरूप तुरन्त इस उत्सव के लिए कात्तिक पूर्णिमा को ही चुना, व बच्चो का ही प्राधिक्य रहता है। यहाँ जैनधर्म और क्योकि चातुर्मास की परिसमाप्ति और श्रमण भगवान अहिसा प्रचार का उपयुक्त क्षेत्र ज्ञात कर जैन भवन के महावीर व उनके श्रमणो के विहार का समय होने से एव तत्त्वावधान में 'जन इन्फोर्मेशन ब्यूरो' खोला गया है। चातुर्मास भर मे किये गये धर्म कार्य रूपी प्रासाद के जहाँ जैनधर्म सम्बन्धी साहित्य और जानकारी की उपशिखर पर कलशारोपण स्वरूप कार्तिक महोत्सव महापर्व लब्धि विदेशी पर्यटकों और स्थानीय जिज्ञसुमों को सुलभ प्रतिवर्ष जैनधर्म की विजय वैजयन्ती फहराता हुआ धर्म हो गयी है। प्रभावना को अत्यधिक प्रसारित करने वाला है । अनुश्रुति चातुर्मास धर्मध्यान का केन्द्र है। निरन्तर अप्रतिबद्ध के अनुसार जब तक यहाँ सवारी की सामग्री का विस्तार विहार करने वाले मुनिराज भी हिसा भगवती की उपानहीं हुआ तब तक भगवान का समवशरण आदि शहर- सना के निमित्त एक स्थान पर वर्षाकाल व्यतीत करते

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