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* अनेकान्त . माता के बार-बार रोके जाने पर भी उसके साथ हो लिया। बाद भविष्यदत्त भी एक पक्षी की सहायता से गजपुर पहुँजब सुरूपा को पता चला तो बन्धुदत्त को सिखाकर कहा चता है और अपनी माता मे सब वृत्तान्त कहता है। माता कि तुम भविष्यदत्त को किसी तरह समुद्र में छोड देना। को वह नागमुद्रिका देकर उसे भविष्यानुरूपा के पास भेजता जिममे बन्धु बान्धवो से उसका मिलाप न हो सके । परन्तु है। स्वय अतक प्रकार के रत्नादि लेकर राजा के पास भविष्यदत्त की माता उमे उपदेश देती हुई रहती है कि जाता है और उन्हे राजा को भेट करता है। भविष्यदत्त परधन प्रौर परनारी को स्पर्श न करना । पाँच सौ बरिणको राजा को सब वृत्तान्त सुनाता है। परिजनो के साथ वह के साथ दोनों भाई जहाज में बैठकर चले। कई द्वीपान्तरो राजसभा में जाता है और बन्धुदत्त के विवाह पर प्रापति को पार कर उनका जहाज मदनाग द्वीप के समुद्र तट पर प्रकट करता है । राजा धनवइ को बुलाना है और बन्धुजा लगा। प्रमुख लोग जहाज से उतर कर मदमाग पर्वत दत्त का रहस्य खुनने पर राजा कोषवश दोनो को काराकी शोभा देखने लगे । बन्धुदत्त धोखे से भविष्यदत्त को वही वास का दण्ड देता है, पर भविष्यदत्त दोनों को ड्रडवा देता एक जङ्गल में छोड़कर अपने साथियो के साथ अगे चला है। राजा जयलक्ष्मी और चक्रलेखा नाम की दो दासियो जाता है। बेचारा भविष्यदत्त भटकता हुप्रा उज? हा एक को भविष्यानुरूपा के पास भेजता है। वे जाकर भविष्यासमृद्ध नगर में पहुँचता है । वहाँ पहुँच कर जिन मन्दिर मे नुरूपा से कहती हैं, राजा ने भविष्यदत्त को देश निकाले चन्द्रप्रभु की पूजा करता है। उसी उजडे नगर में वह एक का आदेश दिया है और बन्छ दत्त को सम्मान। अतः अब सुन्दर युवती को देखता है। उसी से भविष्यदत्त को पता तुम बन्धुदत्त के साथ रहो। किन्तु वह भविष्यदत्त मे अपनी चलता है कि वह समृद्ध नगर प्रसुरो द्वारा उजाड़ा गया अनूरक्ति प्रगट करती है। धनवइ नव दम्पत्ति को लेकर है। कुछ समय बाद वह असुर वहाँ पाता है और भविष्य घर पाता है। कमलश्री व्रत का उद्यापन करती है। वह दत्त का उस सुन्दरी से विवाह कर देता है।
जन संघ को जेवनार देती है। वह पिता के घर जाने को इधर पुत्र के चिरकाल तक न लौटने से कमलश्री तयार होती है, पर कचनमाला दासी के कहने पर सेठ सुव्रता नाम की प्राधिका से उसके कल्याणार्थ 'श्रुत पवमी कमश्री से क्षमा मागता है। राजा मुमित्रा के साथ व्रत' का अनुष्ठान करती है। उधर भविष्यदत्त भी माँ का भविष्यदत्त के विवाह का प्रम्त व रखता है । स्मरण होने से सपत्नीक और प्रचूर सम्पत्ति के साथ घर
कुछ समय बाद पांचाल नरेश चित्राग का दूत राजा लोटता है। लौटते हए उनकी बन्धुदत्त से भेट हो जाती भाल के पास प्राता है और कर तथा अपनी कन्या है। जो अपने साथियो के साथ यात्रा में प्रसफत हो विपन्न समित्रा को देने का प्रस्ताव करता है। राजा प्रसमजस में दशा में था। भविष्यदत्त उनका सहर्ष स्वागत करता है। पड़ जाता है। भविष्पदत्त युद्ध के लिये तैयार होता है और किन्तु बन्धुदत्त धोखे से उसकी पत्नी और प्रभूत धनराशि साहस तथा धैर्य के साथ पांचाल नरेश को बन्दी बना लेता को लेकर साथियों के साथ नौका मे सवार हो वहाँ से चल है। राजा सुमित्रा का विवाह भविष्यदत्त के साथ करता देता है।
है और राज्य भी सौप देता है। मार्ग में उसकी नौका पुनः पथभ्रष्ट हो जाती है और कुछ समय के बाद भविष्यानुरूपा के दोहला उत्तन बजम तमे गजपुर पहुंचते हैं। घर पहुँच कर बन्धुदत्त होता है और वह तिलक द्वीप जाने की इच्छा करती है। भविपदत्त की पत्नी को अपनी पत्नी घोषित कर देता भविष्ष दत्त सपरिवार विमान में बैठकर तिलक द्वीप है । उनका विवाह होना निश्चित हो जाता है। कमलश्री पहुंचता है और वहाँ जिन मन्दिर मे चन्द्रप्रभु जिन की लोगों से भविष्यदत्त के विषय मे पूछती है, परन्तु कोई उसे सोत्साह पूजन करता है और चारण मुनि के दर्शन कर स्पष्ट नहीं बतलाता । कमलश्री मुनिराज से पुत्र के सम्बन्ध श्रावक धर्म का स्वरूप सुनते हैं। प्रग्ने मित्र मनोवेग के में पूछती है। मुनिराज ने कहा, तुम्हारा पुत्र जीवित है, पूर्वभव की कथा पूछता है और सभी सकशल गजपुर लौट वह यहाँ पाकर माधा राज्य प्राप्त करेगा। एक महीने के प्राते है । भविष्यदत्त बहुत दिनों तक राज्य करता है।