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१२, वर्ष २६, कि० २
अनेकान्त
को बड़ी चिन्ता हुई। राजा ने गुप्तचरो को कुमार का परन्तु वह अपनी अयोग्यतायो के कारण शासन में असफल पता लगाने के लिए भेजा। वे कुए में गिरे हुए मृत अश्व हो जाता है। उसकी दुर्बलता और धर्मसेन की वृद्धावस्था को देखकर और कुमार के वस्त्रो को लेकर वापिस लौटे। का अनुचित लाभ उठाकर बकुलाधिपति उत्तमपुर पर उन्हे ढूढने पर भी कुमार का कोई पता न लगा। अत आक्रमण कर देता है। धर्मसेन ललितपुर के राजा से अन्तःपुर में करुण विलाप का समुद्र उमड़ पड़ा।
महायता मांगता है। वराग इस अवसर पर उत्तमपुर मथुरा के राजा इन्द्रसेन का पुत्र उपेन्द्रसेन था। इस जाता है और वकुलाधिपति को पराजित कर देता है। राजा ने एक दिन ललितपर मे देवसेन के पास अपना दूत पिता-पुत्र का मिलन होता है, और प्रजा वराग का स्वागत भेजा और अप्रतिमल्ल नामक हाथी की मांग की। देव- करती है। वह विरोधियो को क्षमा कर राज्य शासन सेन द्वारा हाथी के न दिये जाने पर रुष्ट हो मथगधिपति प्राप्त करता है और पिता की अनुमति से दिग्विजय ने उस पर आक्रमण कर दिया। इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन करने जाता है और अपने नये राज्य की राजधानी सरदोनो की सेना ने बड़ी वीरता से युद्ध किया, जिससे देव- स्वती नदी के किनारे प्रानर्तपुर को बसाता है । सेन की सेना छिन्न-भिन्न होने लगी। कुमार वराग ने वराग ने प्रानर्तपुर में सिद्धायतन नाम का चैत्यालय पाकर देवसेन की सहायता की और इन्द्रसेन पराजित हो निर्माण कराया और विधिपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न गया।
कराई। ललितपुर का राजा देवसेन कुमार के बल और परा- एक दिन ब्राह्ममुहूर्त मे राजा वराग तेल समाप्त होते क्रम से प्रसन्न होकर उसे अपनी पुत्री सुश्री सुनन्दा और हुए दीपक को देखकर देह-भोगो से विरक्त हो जाता है और प्राधा राज्य प्रदान करता है। एक दिन राजा की मनो- दीक्षा लेने का विचार करता है। परिवार के व्यक्तियो ने रमा नाम की पु कुमार के रूप सौन्दर्य को देखकर उसे दीक्षा लेन से रोकने का प्रयत्न किया, किन्तु वह न आसक्त हो जाती है और विरह से जलने लगती है । मनो- माना और वरदत्त केवली के निकट दिगम्धर दीक्षा धारण रमा कूमार क पास अपना दूत भजती है। पर दुराचार की। और तपश्चरण द्वारा आत्म-साधना करता हमा से दूर रहने वाला कुमार इनकार कर देता है। मनोरमा अन्त में तपश्चरण से सर्वार्थ सिद्धि विमान को प्राप्त विरहाग्नि जलने लगती है।
किया। उसकी स्त्रियों ने भी दीक्षा ले ली। उन्होने भी वराग के लुप्त हो जाने पर सुषेण उत्तमपुर के राज्य अपनी शक्ति के अनुसार तपादि का अनुष्ठान किया और कार्य को सम्हालता है।
यथायोग्य गति प्राप्त की।
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