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• ॐ महम *
अनेकान्त
परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष २६ किरण ३
कार-सवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६
वीर निर्वाण संवत् २४६६. वि० सं० २०३०
जुलाई, अगस्त
१९७३
श्रुत देवता स्तुतिः जयत्यशेषामरमौलिलालितं सरस्वति त्वत्पदपङ्कजद्वयम् । हृदि स्थितं मजनजाड्यनाशनं रजोविमुक्तं श्रयतीत्यपूर्वताम ।। अपेक्षते यन्न दिनं न यामिनी न चान्तरं नैव बहिश्च भारति । न तापकृज्जाड्यकरं न तन्महः स्तुवे भवत्याः सकलप्रकाशकम् ॥ (१५-१)
-मुनि पद्मनन्दि हे सरस्वती! जो तेरे दोनों चरण कमल हृदि में स्थित होकर लोगों की जड़ता (अज्ञानता) को नष्ट करने वाले तथा रज (पाप रूप धूलि) से रहित होते हुए उस जड़ और धूलि युक्त कमल की अपेक्षा अपूर्वता (विशेषता) को प्राप्त होते हैं वे तेरे दोनों चरण कमल समस्त देवों के मुकुटों से स्पर्शित होते हुए जयवन्त होवें । हे सरस्वती ! तेरा जो तेज न दिन की अपेक्षा करता है और न रात्रि की भी अपेक्षा करता है, न अभ्यन्तर की अपेक्षा करता है और न बाह्य की अपेक्षा करता है तथा न सन्ताप को करता है और न जड़ता को भी करता है, उस समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाले तेरे तेज की मैं स्तुति करता हूँ।
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