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• अनेकान्त .
[ ३६ जिसमें मध्यकालीन मन्दिरो की शैली की घड़ी हुई छोटी और का जङ्गल अवशेषों पर ही है। कुछ लोगों का विश्वास ईंटे लगी हैं । दीवार के अन्दरूनी भाग में वेदियाँ बनी हुई है कि चन्द्रप्रभु भगवान् का जन्म स्थान यहीं था और इन हैं । खुदाई के समय यहाँ बहुत सी जैन मूर्तियां मिली थीं। ध्वस्त मन्दिरो में से कोई था। कहा जाता है, यहाँ चोचीस तीर्थङ्करों की मूर्तियां दी। सोभनाथ मन्दिर के निकट ही दो टीले है एक का इस मन्दिर के उत्तर पश्चिमी कमरे में प्रथम तीर्थङ्कर नाम है पक्की कुटी और दूसरे का नाम है कच्ची कुटो। ऋषभदेव की एक मूर्ति मिली थी। एक शिलापट पर दोनों टीलो पर धनुषाकार दीवार बनी हुई है। दोनों ही पद्मासन मुद्रा में भगवान् विराजमान हैं । पीठासन के दोनो टोलों का सूक्ष्म अवलोकन करने पर प्रतीत होता है कि
ओर सामने दो सिंह बैठे हुए हैं। मध्य में ऋषभदेव का यहाँ पर अवश्य ही स्तूप रहे होंगे । लांछन वृषभ है । भगवान् के दोनों प्रोर दो यक्ष खडे है। बौद्ध तीर्थ–सहेट भाग बौद्ध तीर्थ रहा है। म. उनके ऊपर तीन छत्र सुशोभित है । इसके अतिरिक्त शिला बुद्ध के निवास के लिये सेठ सुदत्त ने राजा प्रमेनजित के पट पर तेईस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। यह मूर्ति पुत्र राजकुमार जेत से उसका उद्यान 'जेत बन' पठारह बड़ी भव्य है और लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है। करोड़ मुद्रा में खरीद कर एक बिहार का निर्माण कराया
कई मूर्तियों के प्रासन पर शिलालेख उत्कीर्ण है । इन था। सेठानी विशाखा ने भी 'पूर्वाराम' नाम का एक लेखों के अनुसार प्रतिमाओ का प्रतिष्ठा काल वि० संवत् सखाराम बनवाया था। सम्राट अशोक ने एक स्तूप का ११३३, १२३४ है। इनके अलावा यहाँ चैत्यवृक्ष, शासन निर्माण कराया था। म० बुद्ध ने यहां कई चातुर्मास किये देबियों की मूर्तियों आदि भी प्राप्त हुई हैं। ये सब प्रायः थे। इन सब कारणों से बौद्ध लोग भी इसे अपना तीर्थ मध्यकालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
मानते हैं । देश-विदेश के बौद्ध यहाँ यात्रा करने माते हैं। सोभनाथ मन्दिर के बाहर पुरातत्व विभाग की ओर यहाँ बौद्धों के तीन नवीन मन्दिर भी बन चुके है । वैशाखी से जो परिचय-पद लगा हुआ है, उस पर इसका परिचय पूणिमा को उनका मेला भी भरता है। इस प्रकार लिखा है:
वर्तमान जैन मन्दिर-बलरामपुर से बहराइच जाने ___ "यह एक जैन मन्दिर है। सोभनाथ भगवान् संभव- वाली सड़क के किनारे एक जैन मन्दिर बना हुआ है। नाथ का अपभ्रंश ज्ञात होता है। संभवनाथ तीसरे जैन मन्दिर शिखरबद्ध मन्दिर के बाहर तीन मोर बरामदे बने तीर्थडुर थे और उनकी जन्मभूमि श्रावस्ती थी। यहां से हए हैं। एक हाल मे एक वेदी बनी हुई है। भगवान् कितने ही जैन प्राचार्यों (तीर्थङ्करों) की प्रतिमाये प्राप्त हुई सभवनाथ की श्वेत वर्ण पद्मासन पौने चार फुट अवगाहना हैं। इस मन्दिर के किसी विशेष भाग की कोई निश्चित वाली भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसको प्रतिष्ठ' सन् तिथि तय नहीं की जा सकती है। इसके ऊपर का गुम्बद, १९६६ में की गई थी। मूलनायक के अतिरिक्त २ समव. तो उत्तरकालीन भारतीय-अफगान शैली का है, प्राचीन नाय की, १ महावीर स्वामी की तथा १ सिद्ध भगवान् की जैन मन्दिर के शिखर पर बनाया गया है ।
धातु प्रतिमायें भी विराजमान हैं । भगवान् के चरण-युगल पुरातत्ववेत्ताओं (मि. कनिषम प्रादि) की मान्यता है भी अङ्कित है। कि इस मन्दिर के पास-पास १८ जैन मन्दिर प्रौर थे। मन्दिर उद्यान के दांये बाजू में है। सामने यही जैन जिनके अवशेषो पर पेड़ और झाड़ियां उग पाई है। चारों धर्मशाला भी है।
लेखक की 'भारत के जैन तीर्थ' पुस्तक
के प्रथम भाग से साभार