Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ०००००००००००० ०००००००००००० पामा PRESS नCHAL ......D LTD TAINMETHAN AMRINIK भारतवर्ष का वह भाग जिसे 'राजस्थान' कहते हैं तथा राजस्थान का भी वह भाग जिसे 'मेवाड़' कहते हैं। शौर्य-मक्ति और संयम के क्षेत्र में अपना अद्वितीय गौरव रखता है। एक ओर शौर्य और वीरता के अमर प्रतीक चित्तौड़ और हल्दीघाटी मेवाड़ के गौरव की श्रीवृद्धि कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जैन और वैष्णवों के सर्वोच्च कहलाने वाले धार्मिक तीर्थों से मेवाड़ मंडित हैं। क्षेत्रीय महत्त्व के इन पार्थिव उपादानों से भी अधिक मेवाड़ का गौरव उन पुरखाओं पर इठलाता है, जिन्होंने चन्द वर्षों के भोग और वैभव पूर्ण जीवन बिताने के स्थान पर आध्यात्मिक-नैतिक तथा राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा करते हुए हँसते-हँसते मृत्यु तक का वरण कर लिया। वे हजारों सन्नारियाँ, जो अपने शील गौरव की वैजयन्ती लहराती हुई हँसती-हँसती चिताओं में उतर गई केवल मेवाड़ की थीं। त्याग-वैराग्य और वीरता की यहाँ परम्पराएँ चलती रही हैं। कोई आये और देखें, मेवाड़ के इतिहास को कि वास्तव में मेवाड़ क्या है ? मेवाड़ के शौर्य-त्याग और बलिदान का इतिहास केवल राणावंश के चन्द विश्र त राणाओं के इतिवृत्त के साथ ही पूरा नहीं हो सकता। मेवाड़ का इतिहास प्रत्येक मेवाड़ी की परम्परा में समाया हुआ है, यह अलग बात है कि केवल राणा या चन्द रजवाड़ों के कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को छोड़कर अन्य वंशानुवंशों को न सुना गया, न शोधा गया और न समझा गया। मेवाड़ की धार्मिक परम्पराएं भी सामाजिक राजनैतिक परम्पराओं के समान बड़ी समृद्ध है । यहाँ का राज धर्म "शव" होने पर भी मेवाड़ में धर्म-सहिष्णुता और समन्वय का आदर्श सर्वदा मान्य रहा । अन्य परम्पराओं के समान जैनधर्म भी मेवाड़ में अनेक सफलताओं के साथ न केवल फलता-फूलता रहा, अपितु मेवाड़ के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक उन्नयन में भी सदा अग्रहस्त रहा है। मेवाड़ में अनेक 'जैन मन्दिर' और तीर्थों की स्थापना के साथ शुद्ध वीतराग मार्गीय आत्माराधक साधुमार्गीय परम्परा भी बराबर विकसित होती रही । इतना ही नहीं, पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज के शिष्यानुवंश से पल्लवित हुई मेवाड़ सम्प्रदाय का इस प्रदेश में इतना बड़ा प्राबल्य रहा कि यत्र-तत्र-सर्वत्र उनकी गरिमा का गान अनुगंजित हो रहा हे, आज भी मेवाड़ में इस सम्प्रदाय के हजारों अनुयायी दूर-दूर तक गावों कस्बों में फैले हुए हैं। मेवाड़ के जैन जगत में यह सम्प्रदाय अपना प्रमुखतम स्थान रखता है। मैंने अनुभव किया कि इतने बड़े भूखण्ड पर विस्तृत इतने बड़े समुदाय का नेतृत्व जिन महान् सन्तों ने किया, निश्चय ही उनमें कुछ अप्रतिम विशेषताएँ होंगी। मैं स्वयं इस परम्परा में दीक्षित हूँ तो मेरा सोचना अहैतुक नहीं था। मैंने ऐतिहासिक महान् सन्तों पर शोध करना प्रारम्भ किया तो वस्तुतः कई ऐसे त्यागी-तपस्वी और तेजस्वी चरित्र मिले कि मैं चकित रह गया। मैं कई दिनों से इच्छुक था कि इन महापुरुषों का, जिनका परिचय मिला है व्यवस्थित रूप से कहीं प्रकाशित कर दिया जाये, किन्तु कोई अवसर नहीं मिल रहा था। अचानक गत वर्ष गुरुदेव की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती का विचार उपस्थित हुआ । मैंने देखा कि सैकड़ों गुरुभक्त कार्यकर्ता भी इस उत्सव के लिए उत्सुक हैं तो मैंने सोचा कि क्यों नहीं इस उत्साह को साहित्यिक दिशा में मोड़ दिया जाये । विचार कार्यकर्ताओं तक पहुंचे और सभी ने स्वागत किया और अभिनन्दन ग्रन्थ का कार्य प्रारम्भ हो गया। चिरन्तन उपादेयता तथा सामयिक आवश्यकता ही अभिनन्दन ग्रन्थ के निष्पादन के मूल हैं। अभिनन्दन ग्रन्थ : एक परिचय - प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ में छह खण्ड हैं । अभिनन्दनीय वृत्त के रूप में गुरुदेव श्री का जीवन परिचय है। और उसके पश्चात् हैं, श्रद्धार्चन एवं वन्दनाएँ स्नेह सिक्त भावनाशील मानस का शब्द साक्ष्य ! गुरुदेव श्री का जीवन क्रम कोई अधिक घटना-प्रधान नहीं रहा, और जीवन के जो कुछ विशेष अनुभव हैं भी, तो उनके पीछे पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज, जिनकी पवित्र छत्रछाया में प्रवर्तक श्री का निर्माण हुआ उन्हीं का सर्वाधिक प्रभाव रहा। राज MARCISI . TAS Jaranormananthate ::S.BRat/

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 678