Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
000000000000
*
000000000000
141444400)
१२)
( सम्मान जब व्यक्ति के किसी भौतिकवादी पक्ष को उजागर करता सामने आता है, तो यह मानवता का ही नहीं, उस व्यक्ति के मौलिक स्वरूप का भी अपमान है जो उसमें स्थित होकर भी कभी उभर नहीं सका ।
इसके विपरीत यदि मानव के किसी आत्मिक सौन्दर्य का अभिनन्दन किया जाय तो वह सम्मान किसी व्यक्ति का नहीं होकर मानवता के उन चिरन्तन-मूल्यों का होता है जिनसे विश्व सर्वदा दीप्तिवन्त हुआ है । ऊर्जस्विल रहा है । पूज्य गुरुदेव श्री अम्बालाल जी महाराज का अभिनन्दन, उपर्युक्त चिन्तन के सन्दर्भ में अनय-पूजा के विरुद्ध नय-पूजा का एक विनम्र प्रयास है । भोगवाद के विरुद्ध त्याग प्रतिष्ठा का सबल उपक्रम हैं ।
Jain Education International
पूज्य गुरुदेव श्री अम्बालाल जी महाराज, जिन्होंने विगत पचास वर्षों के सुदीर्घ समय से संयम, स्नेह, सारल्य सहानुभूति आदि व विश्वशान्ति के उन आधारभूत तथ्यों को आत्मसात् कर रखा है, जिन पर अभी तक विश्व जीवित रहा।
त्याग, तप और करुणा को आज विश्व को सर्वाधिक आवश्यकता है । पूज्य गुरुदेव श्री में ये तत्त्व एक रूप हो उठे हैं । अम्बा (अम्मा) करुणा, वत्सलता, स्नेह-सौजन्य का पर्याय बन चुका है ।
मैं विगत पच्चीस वर्ष से इनके साथ हूँ, निकट से मैंने अध्ययन किया, इन्हें देखा, परखा इनकी मौलिक श्रेष्ठता में मुझे कहीं खोट दिखाई नहीं दी ।
मैं मानता हूँ — गुरुदेव श्री बहुत बड़े विद्वान् नहीं हैं, किन्तु सरलता और समता के क्षेत्र में बड़े-बड़े विद्वान् भी इनके समक्ष नगण्य हो जायेंगे ।
गत पन्द्रह वर्ष से ये मेवाड़ के स्थानकवासी धर्मसंघ का संचालन कर रहे हैं। श्रमण संघ के प्रवर्तक पद को निभा रहे हैं । इन और ऐसे ही कई अन्य कारणों से कई विपरीत प्रसंग इनके सामने उभर आये होंगे । किन्तु ये नहीं उलझे ये स्वस्थ रहे, आज भी हैं। सबके भी और सबसे अलग भी । यहाँ में जीवन परिचय नहीं दे रहा हूँ। मैं उस क्यों, को समाधान दे रहा हूँ जो अभी सामने था ।
समग्र मानवता का सम्बल उन व्यक्तियों में मी तो रहा हुआ
जो जल-कमलवत् भौतिकता के विष से
निर्लिप्त है ।
यदि हम ऐसे भी किसी निर्लिप्त पुष्प को उठाकर शीष चढ़ाएँ तो यह उस पुष्प का सम्मान भले ही कहलाए हमारा अपना अलंकरण भी उसी में रहा हुआ है । अभिनन्दन ग्रन्थ आवश्यकता और उपादेयता
श्रद्धा एक होती है-झाड़-फानूस में दीप एक होता है किन्तु दीप की ज्योति कई पहलुओं से चमकती है । श्रद्धा की अभिव्यक्ति भी कई तरह से होती है । धार्मिकों में भक्ति के अनेक रूप विख्यात हैं ही ।
अभिनन्दन ग्रन्थ का निर्माण अभिनन्दन की वह साहित्यिक विधा है, जो कुछ वर्षों पूर्व चली, किन्तु उपयोगी और सशक्त प्रक्रिया होने से निरन्तर विकास पाती जा रही है ।
सामूहिक अभिनन्दन के उपक्रम को स्थायित्व देने के प्रयास ने मन्दिर मठ समाधियाँ, स्तम्भ, छत्रियों आदि के निर्माण की प्रेरणा दी, ये सभी स्थापित स्मारक एवं कीर्ति निकेतन जो हैं, सो है वे मानव को स्मृति दे सकते हैं । किन्तु किसी व्यक्ति के विराट व्यक्तित्व और उसके जीवन दर्शन का बोध वहाँ दुर्लभ है। इनके स्थान पर अभिनन्दन ग्रन्थ जहाँ अभिनन्दनीय के इतिवृत का बोध तो देता ही है, साथ ही अपने में इतनी विस्तृत ज्ञान राशि समेटे रहता है कि युग-युग तक मानव उसका अवगाहन कर अपनी वृत्ति और कृति को ऊर्ध्वमुखी बना सके ।
इधर आये दिन धर्म-दर्शन नीति एवं संस्कृति के क्षेत्र में बड़ा विस्तृत शोधकार्य हुआ । शोधप्रबन्ध के रूप में प्रतिवर्ष जो विराट् साहित्य तैयार होता है, अभिनन्दन ग्रन्थ तथा स्मृति ग्रन्थों ने ऐसे शोधप्रबन्धों का आम जनता के निकट लाने में तथा उन्हें चिरकाल स्थायित्व देने में बड़ा योग दिया ।
इस दृष्टि से भी अभिनन्दन ग्रन्थ की उपयोगिता किसी अन्य प्रयत्न से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है ।
FOK
एत
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org