Book Title: Alankar Shekhar
Author(s): Anantram Shastri Vetal
Publisher: Krishnadas Haridas Gupta
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अलङ्कारशेखरे
पञ्चमं रत्नम्। उपमा काव्यसम्पदा सर्वस्वम् , सा च साधर्म्यमिति । इदानीं तस्य प्रतियोग्यनुयोगिनावाह--
चन्द्रकलाऽम्बुजदाम शिरीषं विद्युत्तारा कनकलता च। दमनककाञ्चनयष्टी दीपः सर्वैरेभिर्योषिर्या ॥१॥ यथाशिखेव दीपस्य, लतेव हैपी, कलेव चान्द्री, स्रगिवाम्बुजानाम् । शिरीषपुष्पं स्मरहेमयष्टी सा मे कदा लोचनगोचरः स्यात्(१)॥
दमनकतरुशाखालम्बि छोलङ्ग(२)युग्मं
तुहिनकिरणबिम्बे खजरीटमचारः। विकचकमलकोशे दाडिमीबीजपति
त्रितयमिदमपूर्व दृष्टमेकत्र चित्रम् ॥ 'तडिद्वा तारा वेत्यादि' 'उद्भिन्नया रत्नशलाकया वे'त्यादि. दर्शनात्तथात्वं वर्ण्यत इत्याहुः ।
अत्यन्तानन्दसन्दोहदायिनी परिवर्यते ॥ योषिदित्यनुवर्तते । यथा
सा कौमुदी नयनपोरमृतैकवर्ति
रानन्दपङ्कजवनी(३)विलसल्लतामा । प्राणाः स्मरस्य जनपुण्यतरोः फलानि
साफल्यमक्षिजनुषां क गता न जाने । शक्तिर्मुर्तिमती स्मरस्य जगतां नारीमयं मण्डनं
कान्तानामुपमानकल्पनकलाकान्तेः समुत्तेजनम् ।
(१) पद्यमिदं गपुस्तके नास्ति । (२) रोलम्ब-इति खपुस्तके। (३) वतीविलसत्तडागः-इति खपु० पाठः।

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