Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
View full book text
________________ श्रमण-दिनचर्या कोशद्वितयादर्वागानेतु कल्पतेऽशनप्रभृति / / ____तत्परतोऽप्यानीतं, मार्गातीतमिति परिहार्यम् // 279 / / द्वात्रिंशवाष्टाविंशतिश्च कवलाः प्रमाणमाहारः / __ तदतिक्रमे प्रमाणातीतं साधोतिन्याश्च / 280 // भक्तमशुद्ध कारणजातेनात्तमपि भोजनावसरे / त्यजति यदि तदा शुद्धो, भुञ्जानो लिप्यते नियतम् / 281 अर्धमशनस्य सव्यञ्जनस्य देहे जलस्य चांशी द्वौ / न्यूनं षष्ठं भागं कुर्यादनिलानिरोधार्थम् // 282 / / भुङ क्ते स्वादमगृह्णन्न लम्बितमद्रुतं विशब्दं च / केसरिभक्षितदृष्टान्ततः कटप्रतरगत्या वा // 283 // जम्बुककाकोपमया यो भुक्त्वा भक्तमविधिनाऽन्यस्मै / दत्ते यो गृह्णाति वमनादि स्यात्तयोर्दोषः // 284 / / आवश्यकेऽपि भणितं द्वावप्येतौ गणाद् बहिः कार्यो / अपुनःकरणतयाऽभ्युत्थिते तपः पञ्चकल्याणम् / / 285 / / भुक्ते द्विदले निर्लेप्य, मुखं कर पात्रकं च दध्यादि / पात्रान्तरेण वाऽश्नाति भोज्यमादौ सदा मधुरम् / 286 / / परिशाटिरहितमभ्यवहरेत्तथा सर्वमन्त्रमरसमपि / ' न ज्ञायते यथा भोजनप्रदेशस्तदितरो वा // 287 / / पात्राणां प्रक्षालनसलिलं प्रथमं पिबति नियमेन / - संशोध्याऽऽस्यं प्रक्षालयन्ति पात्राणि बहिरेत्य // 288 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.Scanned by CamScanner Trust

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155