Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ गणधरपट्ट-द्वात्रिंशिका न कार्यगृया नव जातिगृह्या, व्यक्तः पदं नानुपरन्ति जैनाः / श्रुस्तिवारम्भ इतो नमन्ति, श्रुनादिकत न समकर्म भोमान् / क्षेत्रे व जाता भरते पुरा ये, गणाधिपा ये महनास्पदं तत् / / सर्वे तो वसुभिराव्या, नम्या जिनानां द्विदशा तु सङ ख्या। नन्तार प्राप्ता न समोरकारानुगास्वमीषां गुणितादरोऽतः // समस्तनार्थेवरतीर्थपूजा, ततो विधात साताभिसन्धिः / ततश्चतुर्विशतिरहेता कृताः सत्स्थापनात्तद्गणधारियुक्ताः / मामे यतो भव्यजनोपक पदस्थिताः पूज्यतनाश्च तीर्थे / / 23 / / मोक्षाध्वसिद्धयै जिनपैर्जनानां, तीर्थ कृतं दब्धमशेषविद्भिः। समैगणेश द्य परमेतदद्य याबद्ध तं मृरिवरैः समस्तम् // 24 // तीर्थ ततोऽदोऽवधृतं मुनीशैः सत्माधुमिस्त्यक्तपरस्पृहैश्च / बायो न यत्र परपूर्वमागे. हितोपदेशनवरं प्रवृतम् // 25 / / अविप्लवं यजिनशास्त्रवृन्द, भव्यरिहाप्ये। शिवाध्व सिद्धथ / देवर्विगए पन्तगणाधिपास्तत् पूज्या यदीयावलिकात्र हेतुः // यथाहि तथं गिरिराजरूप-माराध्यमेवाखिलगच्छमानाम् / भेदोऽस्ति यन्नात्र विधौ कथञ्चित्तीर्थाश्रिते गच्छगतो विचित्रः।। सर्वे श्रिता गच्छाता मनुष्या, विरोध जिनशास्त्रगृह्यः। ततो निखि नैर्गणसंश्रितजन, स्थानं मतं पूज्यतमं सदैतत् // 28 // . P.P. Ac. Gunratnasuri M. un Gun Aaradhak Trust ed by CamScanner

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