Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
View full book text
________________ भागमोद्धारककृतिसन्दोहे अथास्त्यतिशयः कश्विधेन भेदेन वर्तते। स एव दधि सोऽन्यत्र नास्तीत्यनुभयं परम् // 10 // सर्वात्मत्वे च भावानां भिन्नो स्यातां न धीध्वनी। भेदसंहारवादस्य तदभावादसम्भवः / / 11 / / यः पश्यत्यात्मानं तत्रास्याहमिति शाश्वतः स्नेहः। / स्नेहात् सुखेषु तृष्यति तृष्णा दोषांस्तिरस्कुरुते // 12 // गुणदर्शी परितृष्यन् ममेति तत्साधनान्युपादत्ते / तेनात्माभिनिवेशो यावत्तावत् स संसारे // 13 // आत्मनि सति परसज्ञा स्त्रपरविभागात् परिग्रहद्वषो। / अनयोः संप्रतिबद्धाः सर्वे दोषाः प्रजायन्ते // 14 // कर्मक्षयाद्विमोक्षः स च तपसस्तच कायसंतापः कर्मफलत्वान्नारक-दुःखमिव कथं तपस्तत् स्यात् // 15 // न स्वेच्छाप्रतिपच्या विशिष्टसुखभावतुल्यवृत्तित्वात् / इष्टौ प्रतीतिकोपस्तदन्यान्धो द्वयेपि समः // 16 // चित्रं च कर्म कार्यात् सङ क्लेशादेव तत्क्षयोऽयक्तः। दुःख्येव तपस्त्रीति च तदभावो योगिनां चैव // 17 // अन्यदपि चैकरूपं तच्चित्रक्षयनिवन्धनं न स्यात् / तच्छक्तिसङ्करक्षयकारीत्यपि वचनमानं तु // 18 // अक्ले शात् स्तोकेऽपि क्षीणे सर्वक्षयप्रसङ्गो यत् / .. साकदिायात् तद्भेदो ह्यन्यथा नियमात् // 19 // ) मुक्तो न मुक्त एव हि संसार्यपि सर्वथा न संसारी। मानमपि मानमेव हि हेत्वाभासोप्यसाबेव // 20 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S in Gun Aaqadhak Trust ed by CamScanner

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155