Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ 105 आगमोद्धारककृतिसन्दोहे वैराग्यरङ्गभरपोषणतत्परं तं, ज्ञात्वा नगं जिनवरं सुखमाश्रयन्तम् मोहोहतां निजचमूमपशस्त्रवीर्या दृष्टवात्र नाशमगमद्धतवीर्यवन्द नष्टे वरिष्ठशुभसंयमघातदक्षे मोहे गतास्तदनुगाः प्रलयं प्रकाम् / ___ ज्ञानावृतिप्रमुग्व उद्घ त उत्कटारो, कि केवलादिगुणराजिरिहाहतो न / / 7 / / राजिमतिवरतरं गिरिराजसंस्थाssपत्केवलं विनिहतामतिदुष्प्रपञ्चम् / निर्विघ्नमेतदिह मोहलयाजिनेशाद् मीतस्यकर्मनृपतेनं बलं ससार / / 8 / / सामान्यतो जिनराजमनुश्रितोऽङ्गी, कैवल्यमाप्नुत इहोत्तमसङ्गमाध्यम् / राजी तु तन्मयहृदा मदनं जघान, कि तल्लभेत नहि तत्प्रभवप्रभावात् // 9 // या नेमिनाथ उदितं गतरागभावं; . .. चित्तं सदा धृतवती न परं जिघृक्षः / सा देवरं गतनयं पथमानिनाय, . तत् किं न केवलमसौ वृणुतेऽई दुत्का // 10 // .. ____ मन्ये मोचयितुं प्रियां भवगतां दुर्ग:समादेशित, मोहाद्यैस्तु सुदुर्गमं प्रतिगतो दुर्ग जिनेन्द्रः प्रभुः। / अस्या भावमनुश्रितं पतिमनु ज्ञात्वा सतीत्वोचितं, पत्नी किं शीलधारिणीमपि पतिः कष्टान्न रक्षेद्यतः // 11 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.Se in Gun Aaradhak Trust ned by CamScanner

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