Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 116
________________ आगमोद्धार ककृतिसन्दोहे टपता मूर्तिः प्रभोः सुरपतिः परितुष्टचेता, इलाख्य सस्कृतिवराय यकां पुराऽहात् // 19 // / तन्मन्दिरं वरतरं धृतजीर्णभावं, योग्यं समुद्धृतिकृते प्रविधार्य सुज्ञः / श्रीसजनो दलपतिस्तूदधारयत्तम् / सौराष्ट्रसम्भवमशेषधनं व्ययित्वा // 20 // __ दृष्ट्वा समुद्ध तमिदं वरपत्तनेशः, श्रीसिद्धराज उदितात्मसुकृत्यभावः / ___ आत्मीचकार सुजनावलिसत्कृताङ्गः, सज्ञाऽत्र राजभुवनेति निवेशिता च // 21 // श्रीवस्तुपालसचिवो निजसोदरेण, सम्पग विचार्य वरचैत्यमिहाध्युवास / कोटी शतानि द्रविणानि मुदा व्ययित्वा // 22 // श्रीमालवीयवरमण्डपदुर्गवासी, सौवर्णिकोपि गिरिराजवरप्रभावात् / सङ ग्राम इत्यभिधया विदितो ह्यमात्य, चैत्यं समेत्य वरमावमिहातनिष्ट / / 23 // इत्येवं विविधैः प्रभावनि वयजुष्टो गिरीरवतो, भव्यनिवृतिमाप्तुकामसहितैराराधीयोऽन्वहम् / ते धन्या गिरिमेनमात्मशुचये शत्रजयाद्रेरिव, ध्यानं पूजनमान्यभावसहिता नित्यं मुदा तन्वते // 24 // मा.प्रा. श्रीपानन्दसागरसूरिकता भीगिरनार-चतुर्विशतिका समाप्ता P.P.AC. Gunratnasuri M.S in Gun Aaradhak Trust ned by CamScanner

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