Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ आगमोद्धारककृतिसन्दोहे द्वधा मेक्षितमुक्तं, सचित्ततोऽचित्ततः तत्राद्यम् / मात्रकारादि भूजलवनस्पतिम्रक्षितं त्रिविधम् // 20 // द्वधाऽचित्तम्रक्षितमेकं कल्प्यं घृतादिसंसक्तम् / अपरं तु लोकनिन्दितवसादिना प्रक्षितमकरप्यम् / 200 चिद्र पकायपट्कान्यतरोपरि संस्थितं तु निक्षिप्तम् / . षड्विधमपि तदनन्तरपरम्पराभ्यां द्विमेदं स्यात् / / 210 तत्र सचित्ताद्य(व्य)वधानस्थितमशनाद्यनन्तरं ज्ञेयम् / ___यत्तु सचित्तोपरि पिठरकादिनिक्षिप्तमितरस्तत् // 211 // यदनन्तरनिक्षिप्तं, यतिनां तत्वल्पनीयमेव(न) स्यात् / यी संघट्टादि त्यजतां, यतनया ग्राह्यमप्यपरम् / / 212 / एवं पिहितमपि सचित्त-कायषटकेन षडविधं स्थगितम् / नवरमचित्तस्थगिते मङ्गचतुष्कं त्रिदं ज्ञेयम् / / 213|| गुरुकं पिहितं गुरुकेण. गुरु लघुफेन लघु च गुरुकेण / लघुकं लघुकेनेषु, द्वितीयतुर्यों न दुष्टौ स्तः // 214 / / क्षिप्त्वाऽन्यत्रायोग्य, मात्रादेयं ददाति तेन यदि। तसंहृतं सचित्त, क्षिपति सचित्तं चतुर्भङ्गो // 215 // तुर्यो मङ्गः शुद्धः, सचित्तसट्टनादिरहितत्वात् / इह पूर्वत्रानन्तरपरम्परविकल्पना कार्या // 216 // दायकदोषयुत तद्, यहाता भवति वालको युद्धः।। वरितो नपुंसकोऽन्धः, प्रकम्प्यमानालको मत्तः।२१७॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M. GUR Aagadhak Trust ed by CamScanner

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