Book Title: Agam Sutra Satik 04 Samavay AngSutra 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 43
________________ ४० समवायाङ्गसूत्रम्-१६/३८ (समवायः-१६) मू. (३८) सोलसय गाहासोलसगापं० तं० -समए वेयालिए उचसग्गपरिना इत्थीपरित्रा निरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए वीरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहातहिए गंथे जमईए गाहासोलसमे सोलसगे। सोलस कसाया पं० २० -अनंतानुबंधी कोहे अनंतानुबंधी माणे अनंतानुबंधी माया अनंतानुबंधी लोभे अपच्चक्खाणकसाए कोहे अपचक्खाणकसाए माणे अपञ्चक्खाणकसाए माया अपञ्चक्खाणकसाएलोभे पञ्चक्खाणावरणे कोहे पच्चक्खाणावरणे माणे पञ्चाक्खाणावरणा माया पञ्चक्खाणावरणे लोभे संजलणे कोहे संजलणे माणे संजलणे माया संजलणे लोभे। मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेया पं० त० - वृ.अथषोडशस्थानकमुच्यतेसुगमंचेदं, नवरंगाथाषोडशकादीनि स्थितिसूत्रेभ्यआरात्सप्त सूत्राणि, तत्रसूत्रकृताङगस्य प्रथमश्रुतस्कन्धेषोडशाध्ययनानितेषांच गाथाभिधानं षोडशमिति गाथाभिधानमध्ययनं षोडशं येषां तानि गाथाषोडशकानि, तत्र ‘समए'त्ति नास्तिकादिसमयप्रतिपादनपरमध्ययनं समय एवोच्यते, वैतालीयच्छन्दोजातिबद्ध वैतालीयम, एवं शेषाणां यथाभिधेयं नामानि, 'समोसरणे'त्तिसमवसरणंत्रयाणांत्रिष्टयधिकानांप्रवादिशतानां मतपिण्डनरूपं, 'अहातहिए'त्ति यथा वस्तु तथा प्रतिपाद्यते यत्र तद्यथातथिकं, ग्रन्थाभिधायकं ग्रन्थः, 'जमिइए'त्ति यमकीयंयमकनिबद्धसूत्रं ‘गाहे तिप्राक्तनपच्चदशाध्ययनार्थस्य गानाद्गाथा गाथा वातप्रतिष्ठाभूतत्वादिति। मू. (३९) मंदरमेरुमणोरम सुदंसण सयंपभेय गिरिराया। रयणुच्चय पियदसण मज्झेलोगस्सनाभी य। वृ.मेरुनामसूत्रे गाथा श्लोकश्च मज्झेलोगस्सनाभी यत्ति लोकमध्ये लोकनामिश्चेत्यर्थः। मू. (४०) अत्थे अ सूरिआवत्ते सूरिआवरणेत्ति । उत्तरे अदिसाई अ, वडिंसे इअ सोलसमे ।। वृ. 'उत्तरेय'त्ति भरतादीनामुत्तरदिगवर्तित्वाद्, यदाह-सव्वेसिं उत्तरो मेरु'त्ति 'दिसाइ य'त्ति दिशामादिदिंगादिरित्यर्थ 'वडिंसे इयत्ति अवतंसः-शेखरः स इवावतंस इति। मू. (४१) पासस्स णं अरहतो पुरिसादानीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समण संपदा होत्था। आयप्पवायस्सणं पुव्वस्स णं सोलस वत्थू प० । चमरबलीणंउवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साइंआयामविक्खंभेणंप, लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहपरिवुडीए प० । इमीसे थे रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिओवमाई ठिई प०, पंचमाए पुढविए अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस सागरोवमाठिती प०।। असुरकुमाराणंदेवाणं अत्यंगइयाणं सोलस पलिओवमाइंठिई प०, सोहम्मीसाणेसुकप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई प०, महासुके कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस सागरोवमाइंठिई प०1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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