Book Title: Agam Sutra Satik 04 Samavay AngSutra 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 196
________________ 19] - १३३ १३३ ८२ અમારા સંપાદીત ૪૫ આગમોમાં આવતા મૂલ નો અંક તથા તેમાં સમાવિષ્ટ ગાથા क्रम आगमसूत्र | गाथा | क्रम | आगमसूत्र मूलं | गाथा गाथा आचार ५५२ 1 १४७ । २४. | चतुःशरण सूत्रकृत ८०६ ७२३ | २५. | आतुरप्रत्याख्यान ख्यान | ७१ । ७० स्थान ११०१० १६९ | २६. । महाप्रत्याख्यानं १४२ | १४२ समवाय ३८३ ९३ | २७. भक्तपरिज्ञा १७२ १७२ भगवती १०८७ ११४ | २८. | तंदुलवैचारिक १६१ १३२ ज्ञाताधर्मकथा २४१ २९. संस्तारक उपासक दशा ७३ १३ | ३०. गच्छाचार १३७ १३७ अन्तकृद्दशा | ६२ १२ | ३१.. गणिविद्या ९. । अनुत्तरोपपातिक ४ | ३२. । देवेन्द्रस्तव ३०७ |३०७ १०.] प्रश्नव्याकरण ४७ १४ | ३३. मरणसमाधि ६६४ ११.| विपाकश्रुत ४७ ३ | ३४. | निशीष १४२० १२., औपपातिक ७७ बृहत्कल्प २१५ व्यवहार २८५ १४.| जीवाभिगम ३९८ | दशाश्रुतस्कन्ध ११४ १५.| प्रज्ञापना ६२२ २३१ । | ३८. जीतकल्प १६. | सूर्यप्रज्ञप्ति १०३ | ३९. महानिशीथ १५२८ १७. | चन्द्रप्रज्ञप्ति २१८ १०७ ४०. | | आवश्यक १८. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति १३१४१. । ओधनियुक्ति ११६५ | १९. | निरयावलिका ४१. पिण्डनियुक्ति ७१२ २०. कल्पवतंसिका दशवैकालिक ५४० | ५१५ २१. | पुष्पिता उत्तराध्ययन | १७३१ १६४० | २२.| पुष्पचूलिका ४४. | नन्दी | १६८ | ९३ | २३.| वहिदशा अनुयोगद्वार ___३५० १४१ | १३.| राजप्रश्निय १०३ ९२ ३६५ | ४३. नों :- 33 गाथा संन्यानो समावेश मूलं भां 45 x 14छे. ते मूल सिवायनी असा गाथा सम४वी नहीं. मूल श६ में अभी सूत्र भने गाथा बने भाटे नो मापेको संयुक्त अनुमछ. गाथा Mi४ संघानीमा सामान्य घरावती छोपाथी तेनी मला આપેલ છે. પણ સૂત્રના વિભાગ દરેક સંપાદકે ભિન્નભિન્ન રીતે કર્યા હોવાથી અમે સૂત્રોક જુદો પાડતા નથી. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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