Book Title: Agam Sutra Satik 04 Samavay AngSutra 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 184
________________ समवायः - प्रकीर्णकाः १८१ मू. (३५८) संवरे अनियट्टी य, विजए विमलेति य । देवोववाए अरहा, अनंतविजए इय॥ मू. (३५९) एए वुत्ता चउव्वीसं भरहे वासम्मि केवली। आगमिस्सेण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा। मू. (३६०) एएसि णं चउव्वीसाए तित्थकराणं पुब्बभविया चउव्वीसं नामधेजा भविस्संति, तंजहामू. (३६१) सेणिय सुपास उदए पोट्टिल अनगार तह दढाऊ य । कत्तिय संखे य तहा नंद सुनंदे य सतए य। बोद्धव्वा ।। मू. (३६२) देवई य सच्चइ तह वासुदेव बलदेवे। रोहिणी सुलसा चेव तत्तो खलु रेवई वेव ॥ मू. (३६३) ततो हवइ सयाली बोद्धब्वे खलु तहा मयाली य । दीवायणे य कण्हे तत्तो खलु नारए चेव ॥ मू. (३६४) अंबड दारुमडे य साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे । भावी तित्थगराणं नामाइंपुव्वभवियाई॥ मू. (३६५) एएसिणं चउब्बीसाए तिस्थगराणं चउव्वीसं पियरो भविस्संति चउच्चीसं मायरो भविस्संतिचउब्बीसं पढमसीसा भविस्संतिचउच्चीसंपढमसिस्सणीओ भविस्संतिचउव्वीसं पढमभिक्खादायगा भविस्संति चउव्वीसं चेइयरुक्खा भविस्संति, जंबुद्दीवेणं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए बारस चकवट्टिणो भविस्संति तंजहामू. (३६६) भरहे यदीहदंते गूढदंते य सुद्धदंतेय। सिरिउत्ते सिरिभूई सिरिसोमे य सत्तमे ।। मू. (३६७) पउमे य महापउमे विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव। वरिढे बारसमे वुत्ते आगमिसा भरहाहिवा ।। मू. (३६८) एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति, जंबुद्दीवेणंदीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेववासुदेवपियरो भविस्संति, नववासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरोभविस्संति, नव दसारमंडला भविस्संति, तंजहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी एवं सोचेव वण्णओ भाणियव्वोजाव नीलगपीतगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा मायरो भविस्संति, मू. (३६९) नंदे य नंदमित्ते दीहबाहू तहा महाबाहू। अइबले महाबले बलभद्दे य सत्तमे ।। मू. (३७०) दुविठू यतिविढू य आगमिस्साण वण्हिणो। जयंति विजए भद्दे सुप्पबे य सुदंसणे । आणंदे नंदणे पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे। मू. (३७१) एएसिणं नवण्हं बलदेववासुदेवाणं पुव्वमविया नव नामधेजा भविस्संति, नव धम्मायरिया भविस्संति, नव नियाणभूमीओ भविस्संति, नव नियाणकारणा भविस्संति, नव पडिसत्तू भविस्संति, तंजहा -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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