Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 24 :: उद्देशकः 1 ] 663 पुढवीए णेरइएसु उववजित्तए से णं भंते / केवइकालद्वितीएसु उवव. ज्जेजा?, गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमट्टितीएसु उक्कोसेणं तिसागरोवमट्टितीएसु उववज्जेजा / / ते णं भंते ! जीगा एगसमएणं एवं जहेब रयणप्पभाए उववज्जंतगमगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेमोत्ति कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुतं अभहिथं उक्कोसेणं बारससागरोवमाई चाहिं . पुव्वकोडीहि अहियाई एवतियं जाव करेजा 1, 2 / एवं रयणप्पभपुटविगमसरिसा णववि गमगा भाणियव्वा नवरं सव्वगमएसुवि नेरइयद्वितीसंवेहेसु सागरोवमा भाणियव्वा एवं जाव छट्ठीपुढवित्ति, णवर नेरइयठिई जा जत्थ पुढवीए जहन्नुकोसिया सा तेणं चेव कमेण चउगुणा कायव्वा 3 / वालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसं सागरीवमाइं चउंगुणिया भवंति पंकप्पभाए पुढवीए चत्तालीसं धूमप्पभाए असट्टि तमाए अट्टासीइं संघयणाई वालुयप्पभाए पंचविहसंघयणी तंजहावयरोसहनारायसंघयणी जाव खीलियासंवयणी पंकप्पभाए चउन्विहसंघयणी धूमप्पभाए तिविहसंघयणी तमाए दुविहसंघयणी तंजहा-वयरोसभनारायसंघयणी य 1 उसभनारायसंघयणी 2, सेसं तं चेव 4 / पजत्तसंखेनवासाउय जाव तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए अहेसत्तमाए पुटवीए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेजा गोयमा ! जहन्नेणं बावीसंसागरोवमट्टितीएसु उक्कोसेणं तेत्तीसंसागरोवमद्वितीएसु उववज्जेजा 5 / ते णं भंते ! जीवा एवं जहेव रयणप्पभाए णव गमका लद्धीवि सच्चेव णवरं वयरोसभ-णारायसंघयणी इथिवेयगा न अवज्जति सेसं तं चेव जाव अणुबंधोत्ति 6 / संवेहो भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाई उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई कालादेसेणं जइन्नेणं बावीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुतेहिं अब्भहियाई उक्कोसेणं छावटि सागरोवमाई चाहिं पुवकोडीहि अब्भहियाई एवतियं जाव करेजा 1, 7 / सो चेव
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