Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 41 :: उद्देशकः 166 ] [841 जुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कत्रो उववज्जति ?, एवं एत्थवि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्दे सगा कायव्वा 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // 41-141 / 168 // सुकपक्खिय-रासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कत्रो उववज्जति ?, एवं एथवि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीस उद्दे सगा भवंति 1 / एवं एए सब्वेवि छन्नउयं उद्दे सगसयं भवंति रासीजुम्मसयं 2 // 41-166 / 116 // जाव सुकलेस्सा सुकपक्खिय-रासीजुम्म कलियोगवेमाणिया जाव जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेंति, णो इणडे सम? 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ // सूत्रं 867 // . भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो श्रायाहिणपयाहिणं करेइ 2 त्ता वंदति नमसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! सच्चे णं एसम? जे ण तुज्मे वदहत्तिकटु, श्रपति(अपुव्व)वयणा खलु अरिहंता भगवंतो, समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ // सूत्र 868 // रासीजुम्मसयं समत्तं // 41 सतं // // इति एकचत्वारिंशत्तमं शतकम् // 41 // सव्वाएभगवईए अट्टतीसं सतं सयाणं 138 उद्देसगाणं 1125 // चुलसीयसयसहस्सा पदाण * पवरवरणाणदंसीहिं / भावाभावमणंता पन्नत्ता एस्थमंगमि // 1 // तवनियमविणयवेलो जयति सदा नाणविमलविपुलजलो / हेतुसत-विपुलवेगो संघसमुद्दो गुणविसालो // 2 // णमो गोयमाईणं गणहराणं, णमो भगवईए विवाहपन्नत्तीए, णमो दुवालसंगस्स गणिपिडगस्स //
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