Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमभद्गवति) सूत्रं :: शतकं 34 : अवांतर श०१ उ०१ ] [ 815 यणुसेढीयो उववजित्तए से णां तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा जे भविए विसेदि उववजित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा से नेण?णं गोयमा ! जाव उववज्जेजा 18 / एवं एएणं गमएणं पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए दाहिणिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो, जाव सुहुमवगास्सइकाइयो पजत्तो सुहुमवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु चेव, सव्वेसिं दुसमइयो तिसमइयो चउसमझ्यो विग्गहो भाणियव्यो 11 / अपज्जत्तसुहुम-पुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए लोगस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववजिताए से ण भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?, गोयमा ! एगममइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेजा 20 / से केण?णं ?, एवं जहेब पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समो. हया पुरच्छिमिल्ले चेव चरिमंते उववाइया तहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते ममोहया पचच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयव्या सव्वे 21 / अपजत्त-सुहुमपुटविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपज्जत्त-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उवजित्तए से णं भंते ! एवं जहा पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहयो दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइयो तहा पुरच्छिमिल्ने चरिमंते समोहयो उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयबो, अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चेव चरिमंते अपजन-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए एवं जहा पुरच्छिमिल्ले समोहश्रो पुरच्छिमिल्ले चेव उववाइयो तहेव दाहिणिल्ले समोहए दाहिणिल्ले चेव उववाएयव्वो, तहेव निरवसेसं जाव सुहुमवणस्सइकाइयो पज्जत्तयो सुहुमवणस्सइकाइएसु चेव पज्जत्तएसु दाहिणिल्ले चरिमंते उक्वाइओ एवं दाहिगिल्ले समोहश्रो पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो नवरं दुसमइय-तिस
Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418