Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 404
________________ श्रीमव्याख्याप्रज्ञप्ति(श्रीमद्भगवती) सूत्रं : शतकं 40 :: अवांतर श० 1 ] [ 831 // सूत्रं 863 // श्रमन्निपंचिंदियमहाजुम्मसया समत्ता // 12 // एगूणयालीसइमं सयं समत्तं // 31 // // अथ संज्ञिपञ्चेन्द्रियाख्यं चत्वारिंशत्तमं शतकम् // कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कयो उववज्जंति ?, उववाश्रो चउसुवि गईसु, संखेजवासाउय-असंखेजवासाउय-पजत्तअपजत्तएसु य न कयोवि पडिसेहो जाव अणुत्तरविमाणत्ति 1 / परिमाणं अवहारो भोगाहणा य जहा असन्निपंचिंदियाणं वेयणिजवजाणं सत्तरहं पगडीणं बंधगा वा प्रबंधगा वा वेयणिजस्स बंधगा नो अबंधगा मोहणिजस्स वेदगा वा अवेदगा वा सेसाणं सत्तराहवि वेदगा नो अवेयगा सायावेयगा वा असायावेयगा वा मोहणिजस्स उदई वा अणुदई वा सेसाणं सत्तराहवि उदयी नो अणुदई नामस्स गोयस्स य उदीरगा नो अणुदीरगा सेसाणं छराहवि उदीरगा वा अणुदीरगा वा कराहलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा सम्मदिट्ठी वा मिच्छादिट्ठी वा सम्मामिच्छादिट्ठी वा णाणी वा अन्नाणी वा मणजोगी वा वइजोगी वा कायजोगी वा उपयोगो वन्नमादी उस्सासगा वा नीसासगा वा याहारगा य जहा एगिदियाणं विरया य अविरया य विरयाविरया२. सकिरिया नो अकिरिया 2 / ते णं भंते ! जीवा कि सत्तविहबंधगा वा अट्टविहबंधगा वा छबिहबंधगा वा एगविहबंधगा वा ?, गोयमा ! सत्तविहबंधगा वा जाव एगविहबंधगा वा 3 / ते णं भंते ! जीवा किं श्राहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वा नोसन्नोवउत्ता वा ?, गोयमा ! श्राहारसन्नोवउत्ता जाव नोसन्नोवउत्ता वा 4 / सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा कोहकसायी वा जाव लोभासायी वा अकसायी वा इत्थीवेदगा वा पुरिसवेदगा वा नपुंसगवेदगा वा अवेदगा वा इत्थिवेदबंधगा वा पुरिसवेदबंधगा वा नपु. सगवेदबंधगा वा प्रबंधगा वा, सन्नी नो असन्नी सइंदिया नो अणिदिया

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