Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 408
________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूत्र : शतकं 41 उद्देशकः 1] [835 कायया पढमतइयपंचमा एक्कगमा सेसा अट्ठवि एकगमा 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 / / 40-15-3 / 11 // पढमं श्रभवसिद्धिय-महाजुम्मसयं समत्तं // चत्तालीसमसए पन्नरसमं सयं समत्तं // // 40 // 15 // कराहलेस्स-अभवसिद्धिय-कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कयो उववज्जति ?, जहा एरसिं चेव श्रोहियसयं तहा कराहलेस्समयंपि नवरं ते णं भंते ! जीवा कराहलेस्सा ?, हंता कराहलेस्सा, ठिती संचिट्टणा य जहा कराहलेस्सासए सेसं तं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // वितियं अभवसिद्धिय-महाजुम्मसयं // ४०-सते सोलसमं समत्तं // 40 // 16 // एवं छहिवि लेस्साहि छ सया कायव्वा जहा कराहलेस्ससयं नवरं संचिट्टणा ठिती य जहेव श्रोहियसए तहेव भाणियव्वा 1 / नवरं सुकलेस्साए उक्कोसेणं एकतीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमभहियाइं 2 / ठिती एवं चेव नवरं अंतोमुहत्तं नत्थि जहन्नगं तहेव सव्वस्थ मम्मत्तनाणाणि नत्थि विरई विरयाविरई अणुत्तरविमाणोववत्ति एयाणि नत्थि 3 / सव्वपाणा ? णो तिण? समढे 4 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ 5 // 40 // 17 // एवं एयाणि सत्त अभवसिद्धियमहाजुम्मसया भवंति 1 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ 2 // एवं एयाणि एकव्वीसं सन्निमहाजुम्मसयाणि 3 // 40 // 18 // 21 // सवाणिवि एकासीतिमहाजुम्मसया समत्ता // सूत्रं 865 // चत्तालीसतिमं सयं समत्तं / // इति चत्वारिंशत्तमं शतकम् // 40 // // अथ शशियुग्माख्यं एकचत्वारिंशत्तमं शतकम् // कइ णं भंते ! रासीजुम्मा पन्नत्ता ?, गोयमा ! चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तंजहा-कडजुम्मे जाव कलियोगे 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तंजहा-जाव कलियोगे ?, गोयमा ! जे


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