Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 406
________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति(श्रीमद्भगवती)सूत्रं :: शतकं 40 :: अवांतर श० 2-7 ] [ 833 खुत्तो 2 / एवं सोलससुवि जुम्मेसु 3 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 4 / पढमसमय-कराहलेस्स-कडजुम्म २सन्निपंचिंदिया णं भंते ! कयो उववज्जंति ?, जहा सन्निपंचिंदिय-पढमसमयउद्देसए तहेव निरवसेसं 5 / नवरं ते णं भंते ! जीवा कराहलेस्सा ?, हंता कराहलेस्सा सेसं तं चेव, एवं सोलससुवि जुम्मेसु 6 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 7 / एवं एएवि एकारसवि उद्दे सगा कराहलेस्ससए, पढमततियपंचमा सरिसगमा सेसा अट्ठवि एकगमा 8 / सेवं भंते ! 2 ति जाब विहरइ 1 | बितियं सयं समत्तं // 40 // 2 // एवं नीललेस्सेसुवि सयं, नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलियोवमस्स असंखेजइभागमभहियाई, एवं ठितीए, एवं तिसु उद्दसएसु, सेसं तं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // तइयं सयं समत्तं // 40 // 3 // एवं काउलेस्ससयंपि, नवरं संचिट्ठणा जहरणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलियोवमस्स असंखेजइभागमभहियाई, एवं ठितीएवि, एवं तिसुवि उद्देसएसु, सेसं तं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाब विहरइ 2 // चउत्थं सयं // 40 // 4 // एवं तेउलेस्सेसुवि सयं, नवरं संचिट्ठणा जहराणेणं एक्कं समयं उकोसेणं दो सागरोवमाई पलियोवमस्स यसंखेजइ-भाग-मन्भहियाइं एवं ठितीएवि नवरं नोसन्नोवउत्ता वा, एवं तिसुवि उद्दसएलु(गमएसु) सेसं तं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 2 // पंचमं सयं // 40 // 5 // जहा तेउलेस्सासतं तहा पम्हलेसासयंपि नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं उकोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, एवं ठितीएवि, नवरं अंतोमुहत्तं न भन्नति सेसं तं चेव, एवं एएसु पंचसु सएसु जहा कराहलेस्सासए गमश्रो तहा नेयम्वो जाव अणंतखुत्तो 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // छ8 सयं समत्तं // 40 // 6 // सुकलेस्ससयं जहा श्रोहियसयं नवरं संचिट्टणा ठिती य जहा कराहलेस्ससए सेसं तहेव जाव अतखुत्तो 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति

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